दोस्तों
कल आपने मछली पालन की पहली कड़ी में "मछली उत्पादन" के बारे में पढ़ा l आज
हम आप सभी से मछली पालन की दूसरी कड़ी "मोती उत्पादन की संस्कृति" के
बारे में शेयर करने जा रहे हैं l आपसे अनुरोध है कि इसे अधिक
से अधिक शेयर करेंl
नोट: -मछली पालन की पहली कड़ी "मछली उत्पादन" को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायेंl
http://kvsbihar.blogspot.in/2015/02/blog-post_20.html
"मोती उत्पादन की संस्कृति"
इस भाग में ताजे पानी के मोती के उत्पादन की जानकारी दी गई है जिससे इस
व्यवसाय से जुड़े लोग इससे लाभान्वित हो सकें।
इस भाग में लेखक ने मोती से जुड़े विभिन्न सामाजिक,ऐतहासिक और आर्थिक पहलुओं को लेते हुए वैश्विक स्तर
पर इसके उत्पादन की गतिविधियों को प्रस्तुत किया है।
1. ताजे पानी के मोती का उत्पादन
i. सतह के केंद्र की सर्जरी
ii. सतह कोशिका की सर्जरी
iii. प्रजनन अंगों की सर्जरी
देखभाल
तालाब में पालन
मोती का उत्पादन
ताजे पानी में
मोती उत्पादन का खर्च
मोती एक प्राकृतिक रत्न है जो
सीप से पैदा होता है। भारत समेत हर जगह हालांकि मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनकी संख्या घटती जा रही
है। अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से हर साल
मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर ने ताजा पानी के सीप से ताजा पानी का मोती
बनाने की तकनीक विकसित कर ली है जो देशभर में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं।
प्राकृतिक रूप से एक मोती का
निर्माण तब होता है जब कोई बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के भीतर प्रवेश कर जाते हैं और सीप
उन्हें बाहर नहीं निकाल पाता, बजाय उसके ऊपर चमकदार परतें जमा होती जाती हैं। इसी आसान तरीके को मोती उत्पादन
में इस्तेमाल किया जाता है।
मोती सीप की भीतरी सतह के समान
होता है जिसे मोती की सतह का स्रोत कहा जाता है और यह कैल्शियम कार्बोनेट, जैपिक पदार्थों व पानी से बना होता है। बाजार में
मिलने वाले मोती नकली, प्राकृतिक या फिर उपजाए हुए हो सकते हैं। नकली मोती, मोती नहीं होता बल्कि उसके जैसी एक करीबी चीज होती है
जिसका आधार गोल होता है और बाहर मोती जैसी परत होती है। प्राकृतिक मोतियों का
केंद्र बहुत सूक्ष्म होता है जबकि बाहरी सतह मोटी होती है। यह आकार में छोटा होता
और इसकी आकृति बराबर नहीं होती। पैदा किया हुआ मोती भी प्राकृतिक मोती की ही तरह
होता है, बस अंतर इतना
होता है कि उसमें मानवीय प्रयास शामिल होता है जिसमें इच्छित आकार, आकृति और रंग का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में
आमतौर पर सीपों की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं- लैमेलिडेन्स
मार्जिनालिस, एल.कोरियानस और पैरेसिया कोरुगाटा जिनसे अच्छी
गुणवत्ता वाले मोती पैदा किए जा सकते हैं।
इसमें छह प्रमुख चरण होते हैं-
सीपों को इकट्ठा करना, इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब में उपजाना
और मोतियों का उत्पादन।
1. सीपों को इकट्ठा करना: तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा किया जाता है और पानी के बरतन या बाल्टियों में
रखा जाता है। इसका आदर्श आकार 8 सेंटी मीटर से ज्यादा होता है।
2. इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना: इन्हें इस्तेमाल से पहले दो-तीन
दिनों तक पुराने पानी में रखा जाता है जिससे इसकी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाएं और
सर्जरी में आसानी हो।
3. सर्जरी: सर्जरी के स्थान के हिसाब से यह तीन तरह की होती है- सतह का केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी। इसमें इस्तेमाल
में आनेवाली प्रमुख चीजों में बीड या न्यूक्लियाई होते हैं, जो सीप के खोल या अन्य कैल्शियम युक्त सामग्री से
बनाए जाते हैं।
इस प्रक्रिया में 4 से 6 मिली मीटर व्यास वाले डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध आदि के आकार वाले सीप के भीतर उसके दोनों खोलों
को अलग कर डाला जाता है। इसमें सर्जिकल उपकरणों से सतह को अलग किया जाता है। कोशिश
यह की जाती है कि डिजायन वाला हिस्सा सतह की ओर रहे। वहाँ रखने के बाद थोड़ी सी
जगह छोड़कर सीप को बंद कर दिया जाता है।
यहाँ सीप को दो हिस्सों- दाता
और प्राप्तकर्त्ता कौड़ी में बाँटा जाता है। इस प्रक्रिया के पहले कदम में उसके
कलम (ढके कोशिका के छोटे-छोटे हिस्से) बनाने की तैयारी है। इसके लिए सीप के
किनारों पर सतह की एक पट्टी बनाई जाती है जो दाता हिस्से की होती है। इसे 2/2 मिली मीटर के दो छोटे टुकड़ों में काटा जाता है जिसे
प्राप्त करने वाले सीप के भीतर डिजायन डाले जाते हैं। यह दो किस्म का होता है-
न्यूक्लीयस और बिना न्यूक्लीयस वाला। पहले में सिर्फ कटे हुए हिस्सों यानी
ग्राफ्ट को डाला जाता है जबकि न्यूक्लीयस वाले में एक ग्राफ्ट हिस्सा और साथ ही
दो मिली मीटर का एक छोटा न्यूक्लीयस भी डाला जाता है। इसमें ध्यान रखा जाता है
कि कहीं ग्राफ्ट या न्यूक्लीयस बाहर न निकल आएँ।
इसमें भी कलम बनाने की उपर्युक्त
प्रक्रिया अपनाई जाती है। सबसे पहले सीप के प्रजनन क्षेत्र के किनारे एक कट लगाया
जाता है जिसके बाद एक कलम और 2-4 मिली मीटर का न्यूक्लीयस का इस तरह प्रवेश कराया जाता है कि न्यूक्लीयस
और कलम दोनों आपस में जुड़े रह सकें। ध्यान रखा जाता है कि न्यूक्लीयस कलम के
बाहरी हिस्से से स्पर्श करता रहे और सर्जरी के दौरान आँत को काटने की जरूरत न
पड़े।
इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा
जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों और न्यूक्लीयस बाहर कर
देने वाले सीपों को हटा लिया जाता है।
ताजा पानी में सीपों का पालन
देखभाल के चरण के बाद इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें
नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया
जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। इनका पालन प्रति
हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप के मुताबिक किया जाता है। उत्पादकता
बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। समय-समय पर सीपों का
निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को अलग कर लिया जाता है। 12 से 18 माह की अवधि में इन बैगों को साफ करने की जरूरत पड़ती है।
गोल मोतियों का संग्रहणपालन
अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। कोशिका या प्रजनन अंग से
मोती निकाले जा सकते हैं, लेकिन यदि सतह वाला सर्जरी का तरीका अपनाया गया हो, तो सीपों को मारना पड़ता है। विभिन्न विधियों से
प्राप्त मोती खोल से जुड़े होते हैं और आधे होते हैं; कोशिका वाली विधि में ये जुड़े नहीं होते और गोल होते
हैं तथा आखिरी विधि से प्राप्त सीप काफी बड़े आकार के होते हैं।
ध्यान रखने योग्य बातें-
·
ये सभी अनुमान सीआईएफए में
प्राप्त प्रायोगिक परिणामों पर आधारित हैं।
·
डिजायनदार या किसी आकृति वाला
मोती अब बहुत पुराना हो चुका है, हालांकि सीआईएफए में पैदा किए जाने वाले डिजायनदार मोतियों का पर्याप्त बाजार
मूल्य है क्योंकि घरेलू बाजार में बड़े पैमाने पर चीन से अर्द्ध-प्रसंस्कृत
मोती का आयात किया जाता है। इस गणना में परामर्श और विपणन जैसे खर्चे नहीं जोड़े
जाते।
·
कामकाजी विवरण
·
क्षेत्र : 0.4 हेक्टेयर
·
उत्पाद : डिजायनदार मोती
·
भंडारण की क्षमता : 25 हजार सीप प्रति 0.4 हेक्टेयर
·
पैदावार अवधि : डेढ़ साल
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि(लाख रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क .
|
स्थायी पूँजी
|
|
1.
|
परिचालन छप्पर (12 मीटर x 5 मीटर)
|
1.00
|
2.
|
सीपों के टैंक (20 फेरो सीमेंट/एफआरपी टैंक 200 लीटर की क्षमता वाले प्रति
डेढ़ हजार रुपये)
|
0.30
|
3.
|
उत्पादन इकाई (पीवीसी पाइप और फ्लोट)
|
1.50
|
4.
|
सर्जिकल सेट्स (प्रति सेट 5000 रुपये के हिसाब से 4 सेट)
|
0.20
|
5.
|
सर्जिकल सुविधाओं के लिए फर्नीचर (4 सेट)
|
0.10
|
कुल योग
|
3.10
|
|
ख .
|
परिचालन लागत
|
|
1.
|
तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्य (डेढ़ साल के फसल
के लिए)
|
0.15
|
2.
|
सीप (25,000 प्रति 50 पैसे के हिसाब से)
|
0.125
|
3.
|
डिजायनदार मोती का खाँचा (50,000 प्रति 4 रुपये के हिसाब से)
|
2.00
|
4.
|
कुशल मजदूर (3 महीने के लिए तीन व्यक्ति 6000 प्रति व्यक्ति के हिसाब से)
|
0.54
|
5.
|
मजदूर (डेढ़ साल के लिए प्रबंधन और देखभाल के लिए
दो व्यक्ति प्रति व्यक्ति 3000 रुपये प्रति महीने के हिसाब से
|
1.08
|
6.
|
उर्वरक, चूना और अन्य विविध लागत
|
0.30
|
7.
|
मोतियों का फसलोपरांत प्रसंस्करण (प्रति मोती 5 रुपये के हिसाब से 9000 रुपये)
|
0.45
|
कुल योग
|
4.645
|
|
ग.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
कुल परिवर्तनीय लागत
|
4.645
|
2.
|
परिवर्तनीय लागत पर छह महीने के लिए 15 फीसदी के हिसाब से ब्याज
|
0.348
|
3.
|
स्थायी पूँजी पर गिरावट लागत (प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष
के लिए)
|
0.465
|
4.
|
स्थायी पूँजी पर ब्याज (प्रतिवर्ष 15 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष
के लिए
|
0.465
|
कुल योग
|
5.923
|
|
II.
|
कुल आय
|
|
1.
|
मोतियों की बिक्री पर रिटर्न (15,000 सीपों से निकले 30,000 मोती यह मानते हुए कि उनमें
से 60 फीसदी बचे रहेंगे)
|
|
|
डिजायन मोती (ग्रेड ए) (कुल का 10 फीसदी) प्रति मोती 150 रुपये के हिसाब से 3000
|
4.50
|
|
डिजायन मोती (ग्रेड बी) (कुल का 20 फीसदी) प्रति मोती 60 रुपये के हिसाब से 6000
|
3.60
|
|
कुल रिटर्न
|
8.10
|
|
||
III.
|
शुद्ध आय (कुल आय- कुल लागत)
|
2.177
|
स्रोत-
·
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ
फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, उड़ीसा
2. कैसे बनते हैं मोती
- मोती का
ऐतहासिक परिप्रेक्ष्य
- मोती की
कीमत
- बहुुउपयोगिता
- संरचना
और आकार
- खनिज
संघटन
- मोती का
उत्पादन
- वैश्विक
स्तर पर मोती की खेती
- मोती की
खेती-भारत के संदर्भ में
- मोती की
खेती-विभिन्न चरण
- लोकप्रिय
होती मोती की खेती
मोती का ऐतहासिक परिप्रेक्ष्य
रामायण काल में मोती का उपयोग
काफी प्रचलित था। मोती की चर्चा बाइबल में भी की गई है। साढ़े तीन हजार वर्ष ईसा
पूर्व अमरीका के मूल निवासी रेड इंडियन मोती को काफी महत्व देते थे। उनकी मान्यता
थी कि मोती में जादुई शक्ति होती है। ईसा बाद छठी शताब्दी में प्रसिध्द भारतीय
वैज्ञानिक वराह मिहिर ने बृहत्संहिता में मोतियों का विस्तृत विवरण दिया है। ईसा
बाद पहली शताब्दी में प्रसिध्द यूरोपीय विद्वान प्लिनी ने बताया था कि उस काल के
दौरान मूल्य के दृष्टिकोण से पहले स्थान पर हीरा था और दूसरे स्थान पर मोती। भारत
में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा नामक स्थान पर शाक्य मुनि के अवशेष मिले हैं जिनमें
मोती भी शामिल हैं। ये अवशेष एक स्तूप में मिले हैं। अनुमान है कि ये अवशेष करीब 1500 वर्ष पुराने हैं।
मोती की कीमत
मोती अनेक रंग रूपों में मिलते
हैं। इनकी कीमत भी इनके रूप-रंग तथा आकार पर आंकी जाती है। इनका मूल्य चंद रुपए से
लेकर हजारों रुपए तक हो सकता है। प्राचीन अभिलेखों के अध्ययन से पता चलता है कि
फारस की खाड़ी से प्राप्त एक मोती छ: हजार पाउंड में बेचा गया था। फिर इसी मोती को
थोड़ा चमकाने के बाद 15000 पाउंड में बेचा गया। संसार में आज सबसे मूल्यवान मोती फारस की खाड़ी तथा मन्नार
की खाड़ी में पाए जाते हैं। इन मोतियों को ओरियन्ट कहा जाता है।
बहुुउपयोगिता
मोतियों का उपयोग आभूषणों के
अलावा औषधि-निर्माण में भी होता आया है। भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में
मोती-भस्म का उपयोग कई प्रकार की औषधियों के निर्माण में किए जाने का उल्लेख मिलता
है- कब्ज नाशक के रूप में तथा वमन कराने हेतु। इससे स्वाथ्यवर्ध्दक तथा उद्दीपक
दवाओं का निर्माण किया जाता है। जापान में मोतियों के चूर्ण से कैल्शियम कार्बोनेट
की गोलियां बनाई जाती हैं। जापानियों की मान्यता है कि इन गोलियों के सेवन से
दांतों में छेद होने का डर नहीं रहता। साथ ही इससे पेट में गैस नहीं बनती तथा
एलर्जी की शिकायत नहीं होती।
संरचना और आकार
मोती वस्तुत: मोलस्क जाति के एक
प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता है। यह उसी पदार्थ से बनता
है जिस पदार्थ से मोलस्क का कवच या आवरण बनता है। यह पदार्थ कैल्शियम कार्बोनेट व
एक अन्य पदार्थ का मिश्रण है। इसे नैकर कहा जाता है। हर वह मोलस्क, जिसमें यह आवरण मौजूद हो, में मोती उत्पन्न करने की क्षमता होती है। नैकर स्राव
करने वाली कोशिकाएं इसके आवरण या एपिथोलियम में उपस्थित रहती हैं। मोती अनेक
आकृतियों में पाए जाते हैं। इनकी सबसे सुंदर एवं मूल्यवान आकृति गोल होती है।
परन्तु सबसे सामान्य आकृति अनियमित या बेडौल होती है। आभूषणों में प्राय: गोल मोती
का ही उपयोग किया जाता है। अन्य आकर्षक आकृतियों में शामिल है: बटन, नाशपाती, अंडाकार तथा बूंद की आकृति।
मोती का रंग उसके जनक पदार्थ तथा पर्यावरण पर निर्भर करता है। मोती अनेक रंगों में पाए जाते हैं। परन्तु आकर्षक रंगों में शामिल हैं- मखनिया, गुलाबी, उजला, काला तथा सुनहरा। बंगाल की खाड़ी में पाया जाने वाला मोती हल्का गुलाबी या हल्का लाल होता है। मोती छोटे-बड़े सभी आकार के मिलते हैं। अब तक जो सबसे छोटा मोती पाया गया है उसका वजन 1.62 मिलीग्राम (अर्थात 0.25 ग्रेन) था। इस प्रकार के छोटे मोती को बीज मोती कहा जाता है। बड़े आकार के मोती को बरोक कहा जाता है। हेनरी टाम्स होप के पास एक बरोक था जिसका वजन लगभग 1860 ग्राम था।
खनिज संघटन
खनिज संघटन के दृष्टिकोण से
मोती अरैगोनाइट नामक खनिज का बना होता है। इस खनिज के रवे विषम अक्षीय क्रिस्टल
होते हैं। अरैगोनाइट वस्तुत: कैल्शियम कार्बोनेट है। मोती के रासायनिक विश्लेषण से
पता चला है कि इसमें 90-92 प्रतिशत कैल्शियन कार्बोनेट, 4-6 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थ तथा 2-4 प्रतिशत पानी होता है। मोती अम्ल में घुलनशील होते हैं। तनु खनिज अम्लों के
संपर्क में आने पर मोती खदबदाहट के साथ प्रतिक्रिया कर कार्बन डाईआक्साइड मुक्त
करता है। यह एक कोमल रत्न है। किसी भी धातु या कठोर वस्तु से इस पर खरोंच पैदा हो
जाती है। इसका विशिष्ट घनत्व 2.40 से 2.78 तक पाया गया है।
उत्पत्ति के दृष्टिकोण से मोतियों की तीन श्रेणियां होती है: 1. प्राकृतिक मोती, 2. कृत्रिम या संवर्ध्दित मोती, तथा 3. नकली (आर्टिफिशल) मोती।
मोती का उत्पादन
प्राकृतिक मोती की उत्पत्ति
प्राकृतिक ढंग से होती है। वराह मिहिर की बृहत्संहिता में बताया गया है कि
प्राकृतिक मोती की उत्पत्ति सीप, सर्प के मस्तक, मछली, सुअर तथा हाथी
एवं बांस से होती है। परंतु अधिकांश प्राचीन भारतीय विद्वानों ने मोती की उत्पत्ति
सीप से ही बताई है। प्राचीन भारतीय विद्वानों का मत था कि जब स्वाति नक्षत्र के
दौरान वर्षा की बूंदें सीप में पड़ती हैं तो मोती का निर्माण होता है। यह कथन
आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा भी कुछ हद तक सही पाया गया है। आधुनिक वैज्ञानिकों का
भी मत है कि मोती निर्माण हेतु शरद ऋतु सर्वाधिक अनुकूल है। इसी ऋतु में स्वाति
नक्षत्र का आगमन होता है। इस ऋतु के दौरान जब वर्षा की बूंद या बालू का कण किसी
सीप के अंदर घुस जाता है तो सीप उस बाहरी पदार्थ के प्रतिकाल हेतु नैकर का स्राव
करती है। यह नैकर उस कण के ऊपर परत दर परत चढ़ता जाता है और मोती का रूप लेता है।
वैश्विक स्तर पर मोती की खेती
कृत्रिम मोती को संवर्धित (कल्चर्ड)
मोती भी कहा जाता है। इस मोती के उत्पादन की प्रक्रिया को मोती की खेती का नाम
दिया गया है। उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि मोती की खेती सर्वप्रथम चीन में
शुरू की गई थी। ईसा बाद 13वीं शताब्दी में चीन के हू चाऊ नामक नगर के एक निवासी चिन यांग ने गौर किया कि
मीठे पानी में रहने वाले सीपी में यदि कोई बाहरी कण प्रविष्ट करा दिया जाए तो
मोती-निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस जानकारी ने उन्हें मोती की खेती
शुरू करने हेतु प्रेरित किया। इस विधि में सर्वप्रथम एक सीपी ली जाती है तथा उसमें
कोई बाहरी कण प्रविष्ट करा दिया जाता है। फिर उस सीपी को वापस उसके स्थान पर रख
दिया जाता है। उसके बाद उस सीपी में मोती निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
मोती की खेती-भारत के संदर्भ में
भारत में मन्नार की खाड़ी में
मोती की खेती का काम सन् 1961 में शुरू किया गया था। इस दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय
समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों का प्रयास काफी प्रशंसनीय रहा। इन
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीक से मत्स्य पालन हेतु बनाए गए तालाबों में भी मोती
पैदा किया जा सकता है। हमारे देश में अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एवं लक्षद्वीप
के क्षेत्र मोती उत्पादन हेतु काफी अनुकूल पाए गए हैं।
मोती की खेती-विभिन्न चरण
मोती की खेती एक कठिन काम है।
इसमें विशेष हुनर की आवश्यकता पड़ती है। सर्वप्रथम उच्च कोटि की सीप ली जाती है।
ऐसी सीपों में शामिल है। समुद्री ऑयस्टर पिंकटाडा मैक्सिमा तथा पिकटाडा
मारगराटिफेटा इत्यादि। समुद्री ऑयटर काफी बड़े होते हैं तथा इनसे बड़े आकार के मोती
तैयार किए जाते है। पिकटाडा मैक्सिमा से तैयार किए गए मोती दो सेंटीमीटर तक व्यास
के होते हैं। पिकटाडा मारगराटिफेटा से तैयार किए गए मोती काले रंग के होते हैं जो
सबसे महंगे बिकते हैं।
मोती की खेती हेतु सीपी का
चुनाव कर लेने के बाद प्रत्येक सीपी में छोटी सी शल्य क्रिया करनी पड़ती है। इस
शल्य क्रिया के बाद सीपी के भीतर एक छोटा सा नाभिक तथा मैटल ऊतक रखा जाता है। इसके
बाद सीप को इस प्रकार बन्द कर दिया जाता है कि उसकी सभी जैविक क्रियाएं पूर्ववत
चलती रहें। मैटल ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है तथा
अन्त में मोती का रूप लेता है। कुछ दिनों के बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया
जाता है। मोती निकाल लेने के बाद सीप प्राय: बेकार हो जाता है तथा उसे फेंक दिया
जाता है। मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम है शरद ऋतु या जाड़े की ऋतु। इस
दृष्टिकोण से अक्टूबर से दिसंबर तक का समय आदर्श माना जाता है।
लोकप्रिय होती मोती की खेती
आजकल नकली मोती भी बनाए जाते
हैं। नकली मोती सीप से नहीं बनाए जाते। ये मोती शीषे या आलाबास्टर (जिप्सम का अर्ध्दपारदर्शक एवं रेशेदार रूप) के मनकों
के ऊपर मत्स्य शल्क के चूरे की परतें चढ़ाकर बनाए जाते हैं। कभी-कभी इन मनकों को
मत्स्य शल्क के सत या लैकर में बार-बार तब तक डुबाया निकाला जाता है जब तक वे मोती
के समान न दिखाई पड़ने लगे।प्राकृतिक मोती की प्राप्ति संसार के कई देशों में उनके
समुद्री क्षेत्रों में होती है। इराक के पास फारस की खाड़ी में स्थित बसरा नामक
स्थान उत्तम मोती का प्राप्ति-स्थान है। श्रीलंका के समुद्री क्षेत्रों में पाया
जाने वाला मोती काटिल कहा जाता है। यह भी एक अच्छे दर्जे का मोती है। परन्तु यह
बसरा से प्राप्त मोती की टक्कर का नहीं है। भारत के निकट बंगाल की खाड़ी में हल्के
गुलाबी रंग का मोती मिलता है। अमरीका में मैक्सिको की खाड़ी से प्राप्त होने वाला
मोती काली आभा वाला होता है। वेनेजुएला से प्राप्त होने वाला मोती सफेद होता है।
आस्ट्रेलिया के समुद्री क्षेत्र से प्राप्त मोती भी सफेद तथा कठोर होता है।
कैलिफोर्निया तथा कैरेबियन द्वीप समूह के समुद्री क्षेत्रों तथा लाल सागर में भी
मोती प्राप्त होते हैं। चीन तथा जापान में मीठे जल वाले मोती भी मिलते है।
आज मोती का प्रमुख बाजार पेरिस है। बाहरीन, कुवैत या ओमान के समुद्री क्षेत्र में काफी अच्छे मोती पाए जाते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ डॉलर मूल्य के मोती का आयात करता है।
स्त्रोत
·
डॉ. विनय कुमार
bhawanbhai pearl farming training 7057700035
ReplyDeletebhawanbhai pearl farming training 7057700035
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ReplyDeleteमुझे मोती की खेती के लिए प्रशिक्षण चाहिए। क्या राजस्थान में कही इसके लिए प्रशिक्षण केंद्र हे?
और मोती,मछली, और केकड़े की खेती को समन्वित रूप से कैसे किया जा सकता हे।
इनके लिए मुझे किताब या अन्य जानकारी कहा से प्राप्त हो सकती हे।
Mob 09772035757
मोती पालन (Pearl Farming) एक ऐसा बिसनेस है, जिसमे सिर्फ दस हजार रुपये खर्च करना है, किसी भी लोन की जरुरत नहीं है, और फायदा करोड़ों में कमा सकते हैं :मोती पालन (Pearl Farming Business) की अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9717443729 (Call Time : 2-8 pm) 9540883888 (Whatsapp)
Deleteप्रणाम
ReplyDeleteमुझे मोती की खेती के लिए प्रशिक्षण चाहिए। क्या राजस्थान में कही इसके लिए प्रशिक्षण केंद्र हे?
और मोती,मछली, और केकड़े की खेती को समन्वित रूप से कैसे किया जा सकता हे।
इनके लिए मुझे किताब या अन्य जानकारी कहा से प्राप्त हो सकती हे।
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ReplyDeleteमुझे मोती की खेती के लिए प्रशिक्षण चाहिए। क्या राजस्थान में कही इसके लिए प्रशिक्षण केंद्र हे?
और मोती,मछली, और केकड़े की खेती को समन्वित रूप से कैसे किया जा सकता हे।
इनके लिए मुझे किताब या अन्य जानकारी कहा से प्राप्त हो सकती हे।
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मोती पालन (Pearl Farming) एक ऐसा बिसनेस है, जिसमे सिर्फ दस हजार रुपये खर्च करना है, किसी भी लोन की जरुरत नहीं है, और फायदा करोड़ों में कमा सकते हैं :मोती पालन (Pearl Farming Business) की अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9717443729 (Call Time : 2-8 pm) 9540883888 (Whatsapp)
Deletehello sir i wanna trained on pearl culture & start culture please guide me konark joshi 9993491015
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ReplyDeleteमुझे मोती की खेती के लिए प्रशिक्षण चाहिए। क्या उत्तर प्रदेश में कही इसके लिए प्रशिक्षण केंद्र हे?
और मोती,मछली,की खेती को समन्वित रूप से कैसे किया जा सकता हे।
इनके लिए मुझे किताब या अन्य जानकारी कहा से प्राप्त हो सकती हे। 9953867472
मोती पालन (Pearl Farming) एक ऐसा बिसनेस है, जिसमे सिर्फ दस हजार रुपये खर्च करना है, किसी भी लोन की जरुरत नहीं है, और फायदा करोड़ों में कमा सकते हैं :मोती पालन (Pearl Farming Business) की अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9717443729 (Call Time : 2-8 pm) 9540883888 (Whatsapp)
Deleteमोती पालन (Pearl Farming) एक ऐसा बिसनेस है, जिसमे सिर्फ दस हजार रुपये खर्च करना है, किसी भी लोन की जरुरत नहीं है, और फायदा करोड़ों में कमा सकते हैं :मोती पालन (Pearl Farming Business) की अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9717443729 (Call Time : 2-8 pm) 9540883888 (Whatsapp)
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मोती पालन (PEARL FARMING) की आगामी ट्रेनिंग डेट्स
ReplyDeleteअप्रैल 2017
8 - 9 , 17 - 18 , 22 - 23 , और 29 - 30
मई 2017
8 - 9 , 17 - 18 , 20 - 21 और 27 - 28
मोती पालन (Pearl Farming Business) की अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें –
Indian Pearl Farming Training Institute
खुर्जा सिटी जिला बुलंदशहर (UP)
mob/whats app No. 9540883888, 9717443729
https://www.youtube.com/watch?v=eUQyfT3hQy
ReplyDeleteमोती की खेती से कमाए लाखों , मीठा पानी (पीने वाला पानी) मे करें खेती
किसान भाई बहुउद्देशीय योजना के साथ मोती उत्पादन कर सकते हैं
महिलाऐ -छात्र- छात्राऐं, रिटायर लोग पार्ट टाइम ,फुल टाइम काम करके लाखों कमा सकते हैं. प्रशिक्षण के लिए एवं अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे
Amit K Bamoriya 9770085381
Sulakshana Bamoriya 9584120929
प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए इच्छुक व्यक्ति कृपया प्रशिक्षण की तारीख से कम से कम 5 दिन पहले सूचित करें
9407461361
9770085381
बमाेरिया मोती फार्म एवं ट्रेनिंग सेंटर (ISO 9001-2015 Certified) 🇮🇳
(मोती /कड़कनाथ /बटेर / मछली एवं बकरी फार्म )
कामतीरंगपुर, मढई राेड, साेहागपुर
(ट्रेनिंग के बाद में हम आपके देगें - 👉🏻Pearl Farming Book,
👉🏻Video, Presentations.,
👉🏻Sample Material ..
👉🏻और एक मोती भी
Please confirm date.. Send me name/ place and date for confirmation
Bamoriya farm (ISO 9001-2015 Certified) (Kadaknath Murga.. Bater.. And Pearl Farm)
Ramlal Bamoriya (Babu ji)
Madai Road
Kamti rangpur
Teh. Sohagur
Distt Hoshangabad
Pin 461771 MP
9770085381 wtsapp/ call
9584120929 wtsapp /call
Amit k Bamoriya -Facebook
Pearl farm -Facebook
Bamoriya Pearl Farm - youtube
Other Contact Number -
9407461361
9407460392
9039832938
9669828174
Only above number will work at Madai Area
Nearest Railway Station
Pipariya 461775
Sohagpur 461771
विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लीक करें
https://m.youtube.com/#/chan nel/UCpUOawnNhQ5_Jr2QhTUcGYw
कृपया आगे फॉरवड करें शायद किसी की जिंदगी बदल जाए,
मोती पालन प्रशिक्षण के फायदे
ReplyDelete(1) एक एकड़ में पारंपरिक खेती से 50000/- का मुनाफा हो सकता है और मोती पालन से 8-10 लाख
(2) एक तालाब में बहुउदेशीय योजनाओ का लाभ लेके 8-10 प्रकार के व्यापर करके आय मे बृद्धि
(3) जमीन में जल स्तर को बढ़ाकर सरकार की मदद
(4) बचे हुए सामान से हस्तकला उद्योग को बढ़ावा देना
(5) आसपास के लोगो को रोजगार
अधिक जानकारी संपर्क करे
..अमित बमोरिया
9407461361
9770085381
बमोरिया मोती सम्बर्धन केंद्र
मध्य प्रदेश
KRISHNA Pearl farming & Training center
ReplyDeleteAN ISO 9001:2015 CERTIFIED CENTER
CALL N WTSAP +91 8860493964
Vill- Jahangirpur, jewar khurja raod distt Gautam buddh nagar Near Greater noida
Less fees with certificate, STAY N FOOD
http://krishnapearlfarming.blogspot.in/2017/01/krishna-pearl-farming-research-center.html
PLS DONT DROP UR NO IN COMMENT
10 हजार रुपए के इन्वेस्टमेंट से शुरू हो सकती है खेती
मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। यहां भी आपको सीप से ही मोती
बनाना है।
मोती की खेती करने के लिए इसे छोटे स्तर पर भी शुरू किया जा सकता है। इसके लिए आपको तालाब बनाना जरूरी नहीं है ।
छोटे - छोटे टैंक बनाकर भी मोती की खेती शुरू कर सकते हैं
आप 500 सीप पालकर मोती उत्पादन शुरू कर सकते हैं। प्रत्येक सीप की बाजार में कीमत 7 से 10 रुपए होती है।
लाखों में होती है कमाई
8-9 महीने बाद एक सीप से दो डिज़ाइनर मोती तैयार होता है, जिसकी बाजार में कीमत 300 रुपए से 1500 रुपए तक मिल जाती है।
बेहतर क्वालिटी और डिजाइनर मोती की कीमत इससे कहीं अधिक 10 हजार रुपए तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिल जाती है।
इस तरह अगर एक मोती की औसत कीमत आप 800 रुपए भी मानते हैं तो इस अवधि में लाखों रुपए कमा सकते हैं।
KRISHNA Pearl farming & Training center
ReplyDeleteAN ISO 9001:2015 CERTIFIED CENTER
Vill- Jahangirpur, jewar khurja raod distt Gautam buddh nagar Near Greater noida
Less fees with certificate, STAY N FOOD
CALL N WTSAP +91 8860493964
http://krishnapearlfarming....
PLS DONT DROP UR NO IN COMMENT
10 हजार रुपए के इन्वेस्टमेंट से शुरू हो सकती है खेती
मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। यहां भी आपको सीप से ही मोती
बनाना है।
मोती की खेती करने के लिए इसे छोटे स्तर पर भी शुरू किया जा सकता है। इसके लिए आपको तालाब बनाना जरूरी नहीं है ।
छोटे - छोटे टैंक बनाकर भी मोती की खेती शुरू कर सकते हैं
आप 500 सीप पालकर मोती उत्पादन शुरू कर सकते हैं। प्रत्येक सीप की बाजार में कीमत 7 से 10 रुपए होती है।
लाखों में होती है कमाई
8-9 महीने बाद एक सीप से दो डिज़ाइनर मोती तैयार होता है, जिसकी बाजार में कीमत 300 रुपए से 1500 रुपए तक मिल जाती है।
बेहतर क्वालिटी और डिजाइनर मोती की कीमत इससे कहीं अधिक 10 हजार रुपए तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिल जाती है।
इस तरह अगर एक मोती की औसत कीमत आप 800 रुपए भी मानते हैं तो इस अवधि में लाखों रुपए कमा सकते हैं।
प्रिय मित्रो ,
ReplyDeleteसभी को प्यार भरा नमस्कार .
आशा करता हूँ आप सभी सकुशल होंगे ..मित्रो भारत सरकार (Cifa) और सभी गैर सरकारी संस्थान जो Aquaculture courses कराते है ..सभी recommend करते है की मोती अवं मछली पालन का सही समय सितम्बर माह से शुरू हो जाता है जिसके कारण मेरे पास बहुत फोन आ रहे है ट्रेनिंग के लिए ..आप लोगो के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम में कुछ बदलाव किये है..
सितम्बर माह में -
09-10 , 16-17 & 23 -24
अक्टूबर माह में
1-2 , 14-15& 28-29
नवंबर माह में
04-05 , 11-12& 18-19 and 25-26
दिसंबर माह में
02-03 ,16-17& 25-25 dec
2017
जिसमे
मोती पालन +
मछली पालन +
ज्वेलरी अवं हेंडीक्राफ्ट +
integrated farming +
multipurpose farming आदि शामिल है ..
कृपया सीट लिमिटेड है ..जल्दी बुक करे
(इंडिया और दूसरे देश में केवल मोती पालन की ट्रेनिंग ही दी जाती है ..लेकिन Bamoriya Pearl Farm एक ऐसी संस्था है जो उपरोक्त सभी कोर्स केवल एक फीस में कराती है
साथ ही
मोती पालन की ट्रेनिंग के लिए बमोरिया पर्ल फार्म ही क्यों आते है लोग ! क्योंकि हमे लोगो के बहुमूल्य समय की पहचान है ..हमारा उद्देश्य है लोगो तक सही और संपूर्ण जानकारी पहुंचे .
ट्रेनिंग में निम्नलिखित जानकारीया दी जाती है
1- Multipurpose farming
2- Integrated farming
3- Shells handicraft training
4- pearl & shells jewellery training
5 - fish Farming training
6 - AC room for Trainee #
7 - AC hall for training #
8 - Healthy food #
10 - Training Center at tourist Place #
11 - one Pearl Gift #
12 - one pearl farming Book#
13 - Certificate #
14 - Sample Material #
15 - Complete Training
16 - How to make Tools & moti Beej at home
17 - Marketing Tricks
18 - Arrange Taxi for 50 km #
19 - Kadaknath Murga farming detail
20 - Bater (Quail) Farming
all Facility and Detail are providing in ट्रेनिंग
विडिओ देखने के लिए link पर click करे
https://youtu.be/cRRC_nA8BX4
https://youtu.be/VxW-S0mHVbM
https://youtu.be/aJVjJl0Krao
https://youtu.be/9F9aDvyvT_A
https://youtu.be/rKos0jFooMs
https://youtu.be/ua9gSH0Duik
Amit k bamoriya
9770085381 (Call / Wtsapp)
9407461361 (Call)
प्रिय मित्रो ,
ReplyDeleteसभी को प्यार भरा नमस्कार .
आशा करता हूँ आप सभी सकुशल होंगे ..मित्रो भारत सरकार (Cifa) और सभी गैर सरकारी संस्थान जो Aquaculture courses कराते है ..सभी recommend करते है की मोती अवं मछली पालन का सही समय सितम्बर माह से शुरू हो जाता है जिसके कारण मेरे पास बहुत फोन आ रहे है ट्रेनिंग के लिए ..आप लोगो के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम में कुछ बदलाव किये है..
सितम्बर माह में -
09-10 , 16-17 & 23 -24
अक्टूबर माह में
1-2 , 14-15& 28-29
नवंबर माह में
04-05 , 11-12& 18-19 and 25-26
दिसंबर माह में
02-03 ,16-17& 25-25 dec
2017
जिसमे
मोती पालन +
मछली पालन +
ज्वेलरी अवं हेंडीक्राफ्ट +
integrated farming +
multipurpose farming आदि शामिल है ..
कृपया सीट लिमिटेड है ..जल्दी बुक करे
(इंडिया और दूसरे देश में केवल मोती पालन की ट्रेनिंग ही दी जाती है ..लेकिन Bamoriya Pearl Farm एक ऐसी संस्था है जो उपरोक्त सभी कोर्स केवल एक फीस में कराती है
साथ ही
मोती पालन की ट्रेनिंग के लिए बमोरिया पर्ल फार्म ही क्यों आते है लोग ! क्योंकि हमे लोगो के बहुमूल्य समय की पहचान है ..हमारा उद्देश्य है लोगो तक सही और संपूर्ण जानकारी पहुंचे .
ट्रेनिंग में निम्नलिखित जानकारीया दी जाती है
1- Multipurpose farming
2- Integrated farming
3- Shells handicraft training
4- pearl & shells jewellery training
5 - fish Farming training
6 - AC room for Trainee #
7 - AC hall for training #
8 - Healthy food #
10 - Training Center at tourist Place #
11 - one Pearl Gift #
12 - one pearl farming Book#
13 - Certificate #
14 - Sample Material #
15 - Complete Training
16 - How to make Tools & moti Beej at home
17 - Marketing Tricks
18 - Arrange Taxi for 50 km #
19 - Kadaknath Murga farming detail
20 - Bater (Quail) Farming
all Facility and Detail are providing in ट्रेनिंग
विडिओ देखने के लिए link पर click करे
https://youtu.be/cRRC_nA8BX4
https://youtu.be/VxW-S0mHVbM
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https://youtu.be/rKos0jFooMs
https://youtu.be/ua9gSH0Duik
Amit k bamoriya
9770085381 (Call / Wtsapp)
9407461361 (Call)
क्या मोती की खेती में मोती प्राप्त करते समय जिंदा सीप को मारना पड़ता है या सीप अपना जीवन चक्र पर कर जब अपनी कुदरती मौत मर जाती है तब उसके खोल को खोल कर मोती प्राप्त करते हैं ।
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