दोस्तों आज हम आप सभी से मछली पालन के बारे में शेयर करने जा रहे हैं l आपसे अनुरोध है कि इसे अधिक से अधिक शेयर करें l
विषय सूचि
1. मछली उत्पादन
यह भाग तालाब में पाई जाने वाली मछली का पालन, ताजे
पानी का झींगा, सजावटी मछली, कृत्रिम
मोती, फिंगरलिंग्स का के वाणिज्यिक उत्पादन आदि की जानकारी
देता है।
इस भाग में मोती उत्पादन की संस्कृति से जुड़े विभिन्न पहलुओं को विभिन्न
शीर्षकों के अंतर्गत प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
इस भाग में मछलियों और उनके सह उत्पादों से तैयार किये जाने वाले विभिन्न
मूल्य संवर्द्धित उत्पादों की जानकारी को यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
इस भाग में तटवर्ती मछलीपालन के अंतर्गत झींगा और केकड़ा पालन की विविध जानकारी
दी गई जिससे इससे जुड़े लोग लाभान्वित हो सकें।
इस भाग में अंतर्देशीय मछली पालन के अंतर्गत मछली पालन से जुड़े विभिन्न
विषयों की जानकारी दी गई है।
इस भाग में मछली पालन में रोजगार की संभावनाओं को सरल तरीके से प्रस्तुत किया
गया है।
इस भाग में मिश्रत मछली पालन संस्कृति और उससे होने वाले फायदे बताये गये हैं।
इस भाग में मछलियों में होने वाले रोग और उपचार से संबंधित उपयोगी जानकारी दी
गई है।
इस भाग में मत्स्य पालन के कार्यो का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है जिससे लोग
इससे सीधे तौर पर लाभान्वित हो सकें।
इस भाग में मछली पालन करने से संबंधित जानकारी को प्रस्तुत किया गया है।
इस भाग में मत्स्य पालन के अंतर्गेत पाली जाने वाली मछलियां की जानकारी को
चित्रों सहित प्रस्तुत किया गया है।
इस भाग में मछली पालकोें के लिए महत्वपूर्ण बिंदु बताये गये हैं जो उनके लिए
उपयोगी साबित होंगे।
यह भाग मछली संसाधन की उन्नत विधि की जानकारी देता है।
इस कड़ी में हम पहले मछली उत्पादन के बारे में शेयर करने जा रहे हैंl
मछली उत्पादन
इस लेख में झारखण्ड राज्य में
मिश्रित मछली पालन के तरीकों का विश्लेषण किया गया है. इस राज्य में जहाँ मछली
पालन एक बहुत बड़े व्यवसाय के रूप में उभर रहा है और कई युवाओं को रोज़गार की नयी
दिशा दे रहा है, ये जानकारी बहुत उपयोगी है. झारखंड में
मिश्रित मछली पालन
रेनबो ट्राउट मछली की एक
प्रजाति है। यह मूलतः विदेशों में ठंढे पानी में पायी जाती है और इसे भारत के कई
इलाकों में इसका उत्पादन शुरू किय गया है। हिमालय की तराई, कश्मीर, कर्नाटक के पश्चिमी घाटों की
ऊपरी इलाकों, तमिलनाडु और केरल रेनबो ट्राउट के कल्चर के लिए
आदर्श स्थान है। भारत में शहरी लोगों के बीच इस मछली की माँग बहुत अधिक है।
वर्तमान में भारत में इस मछली की बिक्री ताजी ठंड की गई स्थिति में की जाती है।
विभिन्न प्रकार के मूल्य संवर्धित उत्पादें बनाने के लिए यह प्रजाति आदर्श मानी
जाती हैं।
मछली की बहुफसली
खेती-खेती के तरीकों का पैकेज
मछली की पैदावार के लिए पानी की
बारहमासी उपलब्धता आवश्यक है। इस नज़रिए से पहाड़ी क्षेत्र में मछली की पैदावार
जलग्रहण क्षेत्रों में, नदियों की धाराओं और नदियों के
किनारों या ऐसी किसी भी जगह पर की जा सकती है जहां पानी की आपूर्ति या तो सिंचाई
चैनल या सिंचाई पम्पिंग योजना द्वारा सुनिश्चित हो।
स्थल का चयन
मछली की बढ़त के लिए एक ऐसे
स्थल का चयन किया जाना चाहिए जहां पानी झरने, नदी,
नहर की तरह एक नियमित स्रोत के माध्यम से उपलब्ध हो या इस उद्देश्य
के लिए स्थिर जल वाली भूमि भी विकसित की जा सकती है। मिट्टी पूरी तरह रेतीली नहीं
होनी चाहिए, लेकिन वह रेत और मिट्टी का मिश्रण होना चाहिए
ताकि उसमें पानी को रोकने की क्षमता हो। क्षारीय मिट्टी मछली के अच्छे विकास के
लिए हमेशा बेहतर होती है। तालाब के निर्माण से पहले, मिट्टी
के भौतिक-रासायनिक गुणों का परीक्षण किया जाना चाहिए।
तालाबों का
निर्माण
तालाब का आकार और बनावट भूमि की
उपलब्धता व उत्पादन के प्रकार पर निर्भर करते हैं। एक आर्थिक रूप से व्यावहारिक
परियोजना के लिए तालाब का न्यूनतम आकार 300 वर्ग मीटर गहरा और 1।5 मीटर
से कम नहीं होना चाहिए। एक ठेठ तालाब के पानी की प्रविष्टि तार जाल के साथ अवांछित
जंतुओं की प्रविष्टि रोकने के लिए होनी चाहिए और अतिरिक्त पानी के अतिप्रवाह के
निकास से इकट्ठा पैदावार को रोकने के लिए भी तार जाल लगाना चाहिए। पैदावार को
इकट्ठा करने तथा तालाब को समय-समय पर सुखाने के लिए तालाब के तल में एक ड्रेन पाइप
होनी चाहिए। तालाब की दीवार या मेंढ़ अच्छी तरह दबाकर मज़बूत, ढलानदार और घास या जड़ी बूटियों के साथ होना चाहिए ताकि उन्हें कटाव से
बचाया जा सके। जलग्रहण क्षेत्र को भी एक मिट्टी का बांध बनाकर तालाब में परिवर्तित
किया जा सकता है।
तालाब में फसल
डालने की तैयारी
(i) चूना डालना
हानिकारक कीड़े, सूक्ष्म जीवों के उन्मूलन, मिट्टी को
क्षारीय बनाने और बढती मछलियों को कैल्शियम प्रदान करने के लिए तालाब में चूना
डालना ज़रूरी है। यदि मिट्टी अम्लीय नहीं हो तो चूना प्रति 25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से प्रयोग किया जा सकता है और यदि मिट्टी
अम्लीय है तो चूने के मात्रा 50% से बढा दें। पूरे टैंक में
चूना फैलाने के बाद उसे 4 दिनों से एक सप्ताह के लिए सूखा
छोड देना चाहिए।
(ii) खाद :
खाद प्लेंक्टन बायोमास की
वृद्धि के उद्देश्य से डाली जाती है, जो
मछली के प्राकृतिक भोजन का कार्य करती है। खाद की दर मिट्टी की उर्वरता स्थिति पर
निर्भर करती है। मध्य पहाड़ी क्षेत्र में गोबर जैसी जैविक खाद का 20 टन/हेक्टेयर अर्थात 2 किलो प्रति वर्ग मीटर
क्षेत्र प्रयोग किया जाता है। प्रारंभिक खाद के रूप में कुल आवश्यकता का 50% और इसके बाद बाकी 50% समान मासिक किश्तों में
प्रयोग किया जाना चाहिए है। खाद भरने के बाद टैंक में पानी डालकर उसे 12-15 दिनों के लिए छोड़ दें।
(iii) जलीय खरपतवार और पुराने तत्वों पर नियंत्रण
काई के गुच्छों में अचानक
वृद्धि अधिक खाद या जैविक प्रदूषकों की वजह से होता है। ये गुच्छे कार्बन
डाइऑक्साइड का काफी मात्रा में उत्सर्जन करते हैं, जो
मृत्यु का कारण बन सकती है। अगर पानी की सतह पर लाल मैल दिखाई देता है, तो यह काई के गुच्छे शुरु होने का संकेत है। खाद और कृत्रिम भोजन तुरंत
रोका जाना चाहिए और तालाब में ताजा पानी दें। अगर काई के गुच्छे बहुतायत में हैं
तो तालाब के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में चुनिन्दा रूप से 3% कॉपर सल्फेट या 1 ग्राम/मीटर पानी के क्षेत्र की दर
से सुपरफॉस्फेट डालें। अच्छी पाली जाने वाली मछलियों को स्थान और भोजन की
प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए हिंसक और पुरानी मछलियों का उन्मूलन आवश्यक है। इन
मछलियों का जाल में फंसाकर या पानी ड्रेन कर या तालाब को विषाक्त बनाकर नाश किया
जा सकता है। आम तौर पर इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल विष है महुआ ऑयलकेक (200
पीपीएम), 1% टी सीडकेक या तारपीन का तेल 250
लिटर/ हेक्टेयर की दर से। अन्य रसायन जैसे एल्ड्रिन (0।2 पीपीएम) और ऎंड्रिन (0।01
पीपीएम) भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं लेकिन इनसे परहेज किया जाना
चाहिए। इन रसायनों के उपयोग के मामले में, मछली के बीज
(फ्राय/फिंगरलिंग्स) का स्टॉकिंग के उन्मूलन कम से कम 10 से 25
दिनों के लिए टाला जा सकता है ताकि रसायनों/अवशेषों को समाप्त किया
जा सके।
स्टॉकिंग
अधिकतम मत्स्य उत्पादन में संगत
रूप से, तेजी से बढ़ने वाली प्रजातियों के
विवेकपूर्ण चयन बहुत महत्व है। तीन प्रजातियों यथा मिरर कार्प, ग्रास कार्प और सिल्वर कार्प का संयोजन प्रजाति चयन की आवश्यकताओं को पूरा
करता है और यह मॉडल राज्य के उप शीतोष्ण क्षेत्र के लिए आदर्श सिद्ध हुआ है। इनमें
से, मिरर कार्प एक तल फीडर है, ग्रास
कार्प एक वृहद- वनस्पति फीडर है और सिल्वर कार्प है सतह फीडर है।
प्रजातियों का
अनुपात
प्रजातियों के अनुपात का चयन
आमतौर पर स्थानीय परिस्थितियों, बीज की
उपलब्धता, तालाब में पोषक तत्वों की स्थिति आदि पर निर्भर
करता है। जोन द्वितीय के लिए सिफारिशी मॉडल में प्रजातियों का अनुपात - 2 मिरर कार्प: 2 ग्रास कार्प: 1 सिल्वर
कार्प है।
स्टॉकिंग का
विवरण
स्टॉकिंग की दर आमतौर पर तालाब
की प्रजनन क्षमता और जैव उत्पादकता बढाने के लिए खाद देने, कृत्रिम भोजन, विकास की निगरानी और मछली
के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने पर निर्भर करती है। कृत्रिम भोजन के साथ इस
क्षेत्र के लिए स्टॉकिंग की सिफारिशी दर 15000 फिंगरलिंग्स
प्रति हेक्टेयर है। बेहतर अस्तित्व और उच्च उत्पादन के लिए तालाबों को 40-60
मिमी आकार के फिंगरलिंग्स से स्टॉक करना अच्छा है। तालाब को खाद
देने के 15 दिनों के बाद सुबह-सुबह या शाम को स्टॉक करना
अच्छा है। स्टॉकिंग के लिए बादल भरे दिन या दिन के गर्म समय से परहेज करना चाहिए।
पूरक भोजन
खाद देने के बाद भी मछली पालन
के तालाबों में प्राकृतिक भोजन के जीवों का स्तर अपेक्षित मात्रा में नहीं रखा जा सकता
है। इसलिए, मछली विकास की उच्च दर के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर पूरक आहार आवश्यक है। कृत्रिम आहार के लिए आम तौर पर मूंगफली के तेल और गेहूं के चोकर
का 1:1 अनुपात में केक इस्तेमाल
किया जाता है। जहां तक हो सके, फ़ीड पपड़ियों या कटोरियों के आकार में कुल बायोमास के २% की दर से
देना चाहिए और उन्हें हाथ से तालाबों में विभिन्न स्थानों पर डालना चाहिए ताकि सभी
मछलियों को समान विकास के लिए फ़ीड समान मात्रा में मिले।
ग्रास कार्प को कटी हुई रसीला
घास या त्यागी गयी पत्तियों के साथ खिलाना चाहिए। मछली पालन के लिए रसोई का अपशिष्ट भी अनुपूरक फ़ीड के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
एक व्यावहारिक फ़ीड सूत्र जो
मछली फार्म, सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि
विश्वविद्यालय में व्यवहार में है, नीचे दिया गया है:
10 किलो फ़ीड की तैयारी के लिए :
सामग्री
|
(%)
|
मात्रा
|
मछली का खाना
|
10
|
1.0 किलो
|
गेहूं की भूसी
|
50
|
5.0 किलो
|
मूंगफली का केक
|
38
|
3.8 किलो
|
डीसीपी
|
2
|
0.2 किलो
|
सप्लेविट-एम
|
0.5
|
0.05 किलो
|
प्रति इकाई क्षेत्र में बेहतर पैदावार के
लिए 2-3% की दर से पूरक भोजन ज़रूरी है चूंकि इस क्षेत्र में
पानी के प्राकृतिक उत्पादकता बहुत कम है।
विकास की निगरानी
पोषक तत्वों के अलावा अन्य
अ-जैव कारक जैसे तापमान, लवणता और रोशनी का काल मछली की वृद्धि
प्रभावित करते हैं। स्टोकिंग के 2 महीने के बाद, स्टॉक का 20% निकालना चाहिए ताकि प्रति माह
वृद्धि का मूल्यांकन करने के साथ ही दैनिक आपूर्ति के
लिए फ़ीड की सही मात्रा की गणना की जा सके।
बाद में, इस अभ्यास को हर महीने तब तक दोहराया
जाना चाहिए जब तक की मछली कृत्रिम फ़ीड रोक नहीं दे। मछली
अनुसंधान फार्म एचपीकेवी, पालमपुर में उत्पन्न अनुसंधान डेटा
के आधार पर यह देखा गया है कि मौजूदा जलवायु
परिस्थितियों के अंतर्गत मछलियाँ उत्पादक 8 महीनों के दौरान
(यानी मार्च के मध्य से नवंबर के मध्य तक) वृद्धि हासिल करती हैं। सर्दियों के चार
महीनों (नवंबर के मध्य से मार्च के मध्य) के दौरान कोई
विकास नहीं होता है। इस तरह अनुपूरक फ़ीड है आठ उत्पादक महीनों के दौरान दी जानी
चाहिए। उपर्युक्त मॉडल के उच्च उत्पादन क्षमता के रूप
में परिणाम 5 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष के रूप में
पाए गए हैं।
पैदावार निकालना
पैदावार सुविधाजनक रूप से ड्रैग
नेटिंग या कास्ट नेटिंग (छोटे तालाबों के लिए उपयोगी) या तालाब का पानी खाली करके
निकाली जा सकती है। पैदावार निकालने के एक दिन पहले पूरक फीडिंग बन्द कर दी जाती
है। बाजार की मांग के अनुसार मछलियां सुबह ठंडे वातावरण में निकाली जाती हैं। इस
क्षेत्र के लिए, मछली निकालने का सबसे अच्छा समय
दिसंबर और जनवरी है जो मछली पालन के लिए गैर उत्पादन महीने हैं। स्टॉकिंग का बेहतर
समय मार्च का मध्य या अप्रैल का पहला सप्ताह है। इस तरह सर्दियों के चार
गैर-उत्पादक महीनों का उपयोग नवीकरण, गाद निकालने और तालाबों
की तैयारी के लिए किया जा सकता है।
मछली पालन के लिए
कैलेंडर
जनवरी :
1.
टैंकों का निर्माण
2.
तालाबों/ टैंकों का नवीकरण
जिसमें पुराने टैंकों की गाद निकालना और मरम्मत शामिल है।
फ़रवरी : तालाबों की
तैयारी
1.
चूना डालना : सामान्य दर पानी
के क्षेत्र के अनुसार 250 किलोग्राम/ हेक्टेयर या 25 ग्राम /वर्ग मीटर।
2.
खाद डालना :चूना डालने के एक सप्ताह के बाद 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खाद डालना चाहिए। आरम्भ में कुल मात्रा का आधा
और बाद में आधा बराबर मासिक किस्तों में। उदाहरण के लिए 1 हेक्टेयर क्षेत्र (10000 वर्ग मीटर) के लिए
खाद की कुल आवश्यकता 2000 किलो है यानी 1000 किलो शुरुआत में डालना चाहिए और बाकी बाद में मार्च से अक्तूबर तक 145
किलो प्रति माह की दर से।
3.
खाद डालने के बाद तालब को पानी
से भर दें और 12-15 दिनों के लिए छोड़ दें।
4.
पुराने तालाबों के मामले में
अवांछित मछली, पुराना मछली और हानिकारक कीटों को या
तो स्वयं निकालकर या पानी को विषाक्तता बनाकर नष्ट करना चाहिए।
मार्च से नवंबर :
तालाबों में
स्टॉकिंग करना
1.
स्टॉकिंग खाद डालने के 15 दिनों के बाद की जानी चाहिए जब पानी का रंग हरा हो, जो कि पानी में प्राकृतिक भोजन की उपस्थिति का संकेत है। स्टॉकिंग के लिए
बादल वाले दिन या दिन का गर्म समय टाल देना चाहिए।
2.
स्टॉक की जाने वाली प्रजातियां
हैं कॉमन कार्प, ग्रास कार्प और सिल्वर कार्प।
3.
प्रजातियों का अनुपात - कॉमन
कार्प 3: ग्रास कार्प 2 : सिल्वर कार्प 1।
4.
स्टॉकिंग की दर – 15000 फिंगरलिंग्स/हेक्टेयर। उदाहरण के लिए 0.1 हेक्टेयर टैंक को 1500 फिंगरलिंग्स से 750 कॉमन कार्प : 500 ग्रास कार्प : 250 सिल्वर कार्प के अनुपात में स्टॉक किया जाना चाहिए।
5.
स्टॉकिंग 15 मार्च तक कर देनी चाहिए।
फीडिंग :
पहले महीने के दौरान अर्थात 15 अप्रैल तक, मछली के कुल बीज स्टॉक
बायोमास के 3% की दर से, स्टॉकिंग के
दो दिन बाद फीडिंग शुरु की जानी चाहिए। बाद में फीडिंग की दर 2% तक कम की जानी चाहिए। ग्रास कार्प को खिलाने के लिए कटी हुई रसीली घास की
आपूर्ति भी की जानी चाहिए। फीडिंग रोज़ाना तीन बार की जानी चाहिए।
दिसम्बर :
पैदावार निकालना
टेबल मछली की पैदावार निकालने
का काम मांग के अनुसार 15 नवम्बर से शुरु किया जा सकता है। एक
समय में पूरी पैदावार निकालने की कोई जरूरत नहीं है, अच्छी
कीमत पाने के लिए इसे सर्दी के तीन महीनों तक मांग के अनुसार बढ़ाया जा सकता है।
हाल के वर्षों में देश में
बढ़ती जनसंख्याल के साथ औद्योगिक कचरे और ठोस व्यहर्थ पदार्थों से अलग गंदे पानी
की मात्रा भी उसके प्रबंधन की क्षमता से कहीं अधिक बढ़ी है। प्राकृतिक जल स्रोतों
तक उन्हेंप पहुँचाने के लिए घरेलू सीवर के जरिए तेज प्रयास किए जा रहे हैं।
जैव परिशोधन की
अवधारणा
·
जैव परिशोधन में जैव-रासायनिक
प्रतिक्रिया के लिए जीवाणु की प्राकृतिक गतिविधि का क्रमबद्ध इस्तेमाल शामिल है
जिसके परिणामस्वरूप जैविक पदार्थ कार्बन डायऑक्साइड, पानी, नाइट्रोजन और सल्फेट में बदल
जाता है।
·
घरेलू नाली से बहने वाले पानी
के परिशोधन के लिए बड़े पैमाने पर अपनाई जाने वाली प्रक्रिया में एक्टेवेटेड स्लज
और ट्रिकलिंग फिल्टर विधि, ऑक्सीडेशन/अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब,
एरेटेड लगून और एनेरोबिक परिशोधन विधि के विभिन्न संस्करण शामिल
हैं।
·
इसमें एक नई तकनीक अपफ्लो
एनारोबिक स्लज ब्लैंकेट (यूएएसबी) है। कृषि, बागवानी
और एक्वाकल्चर के जरिए नाली के पानी के पुनर्चक्रण का पारंपरिक तरीका मूलत:
जैविक प्रक्रिया है जो कि कुछ देशों में प्रचलित है। कोलकाता के की भेरियों में
नाली से मछली को खिलाने की परंपरा विश्व प्रसिद्ध है। इन प्रक्रियाओं में पूरा
जोर नाली के पानी से पोषक तत्त्वों को निकालने पर होता है।
·
इन प्रक्रियाओं से सीखने और
नाली के पानी के परिशोधन के विभिन्न तरीकों में नए डाटाबेस से प्राप्त संकेतों
के बाद घरेलू कचरे के परिशोधन के लिए मानक विधि के तौर पर एक्वाकल्चर विधि की
सिफारिश की जाती है।
एक्वाकल्चर के माध्यम से
गंदे पानी के परिशोधन में सीवेज इनटेक प्रणाली, डकवीड
कल्चर कॉम्प्लेक्स, सीवेज फेड फिश पॉन्ड, डीप्यूरेशन पॉन्ड और आउटलेट प्रणाली शामिल हैं।
डकवीड कल्चर कॉम्पलेक्स में
कई डकवीड तालाब होते हैं जहाँ जलीय मैक्रोफाइट जैसे स्पिरोडेला, वोल्फिया और लेमना पैदा किए जाते हैं। गंदे पानी को आगत
प्रणाली के जरिये डकवीड कल्चर प्रणाली में पंप किया जाता है जहाँ इसे दो दिनों तक
रखा जाता है, उसके बाद मछलियों के तालाबों में छोड़ा जाता
है।
1 एमएलडी पानी के परिशोधन के लिए जो
मॉडल तैयार किया गया है, उसमें 18
डकवीड तालाब होते हैं जिनका आकार 25 मीटर X 8 मीटर X 1 मीटर होता है जिन्हें तीन कतारों में
बनाया जाता है, जिसके अनुसार पानी इन तीनों में से होता हुआ
मछलियों के तालाब में प्रवाहित होता है।
इस प्रणाली में 50 मीटर X 20 मीटर X 2 मीटर आकार के दो मछलियों के तालाब होते हैं तथा 40
मीटर X 20 मीटर X 2 मीटर आकार के दो
डीप्यूरेशन तालाब होते हैं। इसमें ठोस सामग्री को निकालने के बाद जो पानी बचता है,
वह आता है।
आठ एमएलडी कचरे के परिशोधन के
लिए भुवनेश्वर शहर के दो स्थानों पर बनाया गया परिशोधन तंत्र इस तरह से बना है
कि वह बड़ी मात्रा में गंदे पानी को साफ कर सके।
प्रभावी परिशोधन के लिए बीओडी
का स्तर 100-150 एमजी प्रति लीटर है, इसलिए एक एनेरोबिक इकाई लगाना जरूरी है जहाँ जैविक भार और बीओडी का स्तर
काफी ज्यादा हो।
डकवीड कल्चर इकाई भारी धातुओं
और अन्य रासायनिक अपशिष्ट को निकालने में मदद करती है, नहीं तो वे मछली के माध्यम से मनुष्य के भोजन चक्र का हिस्सा
बन जाएंगे। ये पोषक तत्त्वों को पंप करने में भी सहायक होते हैं और अपनी प्रकाश
संश्लेषक पक्रिया के द्वारा ऑक्सीजन भी उपलब्ध कराते हैं। पाँच दिनों के भीतर 100 एमजी प्रति लीटर गंदे पानी को बीओडी के पाँचवें स्तर से साफ किया जा
सकता है, जिसमें अंत में बीओडी का स्तर 15-20 एमजी प्रति लीटर पर ले आया जाता है।
सीवेज फेड प्रणालियों में उच्च
उत्पादकता और धारण क्षमता का लाभ उठाते हुए मछलियों वाले तालाब में 3-4 टन कार्प प्रति हेक्टेयर का उत्पादन स्तर हासिल किया जा
सकता है। इस प्रणाली में एक जैव परिशोधन तंत्र होता है जिसमें डकवीड और मछली के
मामले में संसाधन बहाली की उच्च क्षमता होती है। इसकी प्रमुख सीमा यह होती है कि
सर्दियों में परिशोधन की क्षमता कम हो जाती है। यह स्थिति उष्ण कटिबंधीय जलवायु
वाले स्थानों के लिए भी होती है। 1 एमएलडी कचरे के परिशोधन
के लिए एक हेक्टेयर जमीन की जरूरत पड़ती है जो कामकाजी लागत को निकाल देता है और
गंदे पानी के परिशोधन तथा ताजा पानी में उसके प्रवाह का आदर्श तरीका है।
एमएलडी परिशोधन
क्षमता पर खर्च
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि ( लाख में )
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
स्थायी पूँजी
|
|
1.
|
बत्तख के लिए चारे के तालाब का निर्माण (0.4 हेक्टेयर)
|
3.00
|
2.
|
मछली के तालाब का निर्माण (0.2 हेक्टेयर)
|
1.20
|
3.
|
अशुद्धिकरण तालाब का निर्माण (0.1 हेक्टेयर)
|
0.60
|
4.
|
पाइप लाइन, गेट, प्रदूषक तत्वों का प्रवाह आदि
|
5.00
|
5.
|
पम्प और अन्य इंस्टॉलेशन, तालाब की लाइनिंग आदि
|
5.00
|
6.
|
जल विश्लेषण उपकरण
|
1.00
|
कुल
|
15.80
|
|
ख.
|
परिचालन लागत
|
|
1.
|
मजदूर (प्रति महीना 2 लोगों के लिए 2000 रुपये)
|
0.48
|
2.
|
बिजली और ईंधन
|
0.24
|
3.
|
मछली के सीड पर लागत
|
0.02
|
4.
|
विविध व्यय
|
0.10
|
कुल योग
|
0.84
|
|
II.
|
आय
|
|
1.
|
1000 किलोग्राम मछली की बिक्री 30 किलो के हिसाब से
|
0.30
|
परिचालन लागत की वापसी की दर
|
35%
|
जलीय कृषि कार्य की सफलता के
लिए प्रमुख चीजों में एक है सही समय पर जरूरी प्रजाति के बीज अर्थात् मछलियों के
अंडों की आवश्यक मात्रा में उपलब्धता। पिछले कई सालों में सफलतापूर्वक मछलियों
के पालन के बाद भी आवश्यक आकार के बीजों का मिलना मुश्किल होता है। नर्सरी में 72 से 96 घंटे की आयु वाले मछलियों के बच्चे
होते हैं जिन्होंने अभी-अभी खाना शुरू किया होता है और 15
से 20 दिनों तक वे लगातार खाते हैं और इस दौरान वे 25 से 30 मिली मीटर तक बढ़ जाते हैं। इन्हें अगले
दो-तीन महीने के लिए दूसरे तालाब में 100 मिली मीटर के आकार
तक बढ़ने के लिए डाल दिया जाता है।
नर्सरी तालाब का
प्रबंधन
0.2 से 0.10 हेक्टेयर
क्षेत्र में फैले 1.0 से 1.5 मीटर की
गहराई वाले तालाबों को नर्सरी के लिए प्राथमिकता दी जाती है जबकि 0.5 हेक्टेयर वाले क्षेत्रों को व्यावसायिक उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया
जा सकता है। निकासी और निकासी का रास्ता न होने वाले तालाबों और सीमेंट की
टंकियों को फ्राई के नर्सरी पालन में इस्तेमाल किया जाता है। नर्सरी में फ्राई को
बढ़ाने में शामिल विभिन्न चरणों को नीचे दिया जा रहा है-
प्री-स्टॉकिंग
तालाब की तैयारी
जलीय पादपों की सफाई- मछली के
तालाब में पौधों का उगना सही नहीं होता क्योंकि वे सभी पोषक तत्वों को तालाब में
से खींच लेते हैं जो मछलियों/कीड़ों को भोजन प्रदान करते हैं और मछलियों की
आवाजाही में बाधा उत्पन्न करते हैं। इसलिए पानी में मौजूद पौधों को हटाना तालाब
की तैयारी का पहला काम होता है। सामान्यतौर पर, नर्सरी
में और तालाब में मानवीय तरीका ही इसके लिए अपनाया जाता है क्योंकि मछलियाँ छोटी
होती हैं। बड़े तालाबों में अवांछित पौधे हटाने के लिए मशीन, रसायन और जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
सिमेंटेड नर्सरी
टैंक का एक दृश्य
पौधों और जंगली मछलियों का उन्मूलन-
विभिन्न जानवरों जैसे साँप, कछुए, मेढ़क,
पक्षी, उदबिलाव आदि समेत जंगली पौधों और जंगली
मछलियों की तालाब में मौजूदगी नई मछलियों के जीवन के साथ-साथ उनके सामने, जगह और ऑक्सीजन की समस्या भी उत्पन्न करती है। तालाब को सुखाना या
उसमें उपयुक्त कीटनाशक डालना पहले से मौजूद पौधों और जीवों को हटाने का सबसे सही
तरीका है। महुआ ऑयल केक को प्रति हेक्टेयर 2500 किलो के
हिसाब से डालने की सलाह दी जाती है। ऑयल केक कीटनाशक की भांति काम करने के अलावा
जैविक खाद का भी कार्य करता है और प्राकृतिक उत्पादन में बढ़ोतरी करता है। प्रति
हेक्टेयर या मीटर में 350 किलो की मात्रा में व्यावसायिक
ब्लीचिंग पाउडर (30 फीसदी क्लोरीन) को पानी में मिलाकर इस्तेमाल
करना मछलियों को मारने में कारगर होता है। ब्लीचिंग पाउडर के इस्तेमाल से 18 से 24 घंटे पहले यूरिया का मिश्रण 100 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करने से ब्लीचिंग पाउडर की
मात्रा आधी की जा सकती है।
तालाब का
उर्वरीकरण
प्लवक जीव मछलियों का प्राथमिक
भोजन होता है जो कि तालाबों में उर्वरकों के माध्यम से पैदा किया जाता है।
अवांछनीय पेड़-पौधों और जंगली मछलियों को हटाने से बाद सबसे पहले तालाब का इस्तेमाल
अंडा उत्पादन के लिए होता है। लाइमिंग के बाद तालाब में जैव खाद जैसे गाय का गोबर, मुर्गे की अपशिष्ट या अजैविक खाद या दोनों ही को, एक के इस्तेमाल के बाद डाला जाता है। मूँगफली के तेल का केक 750 किलोग्राम, गाय का गोबर 200
किलोग्राम और सिंगल सुपर-फॉस्फेट 50 किलोग्राम का मिश्रण एक
हेक्टेयर में डालना वांछनीय प्लवक जीवों के उत्पादन में प्रभावी होता है। ऊपर
दिये गए मिश्रण के आधे को पानी में मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें और भंडारण से 2-3 पहले इसे नर्सरी में छिड़क दें। बाकी के मिश्रण को तालाब में प्लवक के
स्तर के आधार पर 2-3 बार डाला जा सकता है।
कार्प फ्राई
जलीय कीटों का नियंत्रण- जलीय
कीट और उनके लार्वा, बढ़ती छोटी मछलियों के साथ खाने को
लेकर खींचातानी करते हैं जो बड़े स्तर पर नर्सरी में अंडों के फूटने का कारण बनते
हैं। सोप-ऑयल का मिश्रण (सस्ता खाद्य तेल 56 किलो प्रति
हेक्टेयर के साथ एक-तिहाई किसी भी सस्ती सोप को मिलाकर) जलीय कीटों को मारने का
एक सामान्य और प्रभावी तरीका है। इमल्शन के विकल्प के तौर पर 100 से 200 लीटर मिट्टी तेल (केरोसिन) या 75 लीटर डीजल या डिटर्जेंट पाउडर 2-3 किलो प्रति हेक्टेयर
के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्टॉकिंग
अंडों के फूटने के तीन दिन बाद
उनमें से निकले बच्चों को दूसरी नर्सरी में भेज दिया जाता है। इसे सुबह के समय
किया जाना चाहिए ताकि उन्हें नए वातावरण में खुद को ढालने के लिए दिन का समय मिल
सके। नर्सरी में 3 से 5 मिलियन
प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्पॉन रखने की सलाह दी जाती है। हालांकि, सीमेंट से बनी टंकियों में 10 से 20 मिलियन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भी उन्हें रखा जा सकता है। नर्सरी
में सामान्यत: कार्प के मोनोकल्चर की सलाह दी जाती है।
पोस्ट-स्टॉकिंग
तालाब का प्रबंधन
जैसा कि पहले कहा गया है कि 15 दिन की संस्करण अवधि के दौरान उर्वरीकरण के चरण को 2 से 3 भागों में बाँटा जा सकता है। शुरू के पांच
दिनों तक 1:1 के अनुपात में अच्छी तरह पीसा हुआ मूँगफली का
ऑयल केक और चावल के आटे का पूरक आहार पहले पाँच दिनों तक 6
किलो प्रति मिलियन और बाद के दिनों के लिए 12 किलो प्रति
मिलियन के हिसाब से दो समान किस्तों में उपलब्ध कराया जाता है। पालन के
वैज्ञानिक तरीके को अपनाने से 15 से 20
दिनों के पालन के दौरान फ्राई 20 से 25
मिली मीटर के हो जाते हैं और 40 से 60
फीसदी जीवित रहते हैं। चूंकि, नर्सरी में पालन का समय 15 दिन का सीमित होता है, इसलिए वही नर्सरी
बहु-क्रॉपिंग के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है। सामान्य तालाबों के मामले में 2 से 3 क्रॉप और सीमेंट से बनी टंकियों में 4 से 5 क्रॉप रखे जा सकते हैं।
फ्राई-
फिंगरलिंग्स पालन के लिए तालाब प्रबंधन
फ्राई से फिंगरलिंग्स तक विकास
की अवधि में पालन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तालाब का आकार नर्सरी की तुलना
में 0.2 हेक्टेयर क्षेत्र होना चाहिए।
विभिन्न चरण निम्न के अनुसार शामिल हैं-
प्री-स्टॉकिंग
तालाब का प्रबंधन
प्री-स्टॉकिंग तालाब के
प्रबंधन की तैयारी जैसे अवांछनीय पौधों की सफाई और पहले से मौजूद अवांछनीय चीजों
और जंगली मछली का उन्मूलन नर्सरी के तालाब के प्रबंधन के जैसे ही हैं। पालन करने
वाले तालाब में कीड़ों को नियंत्रित करना जरूरी नहीं है। तालाब में जैव खाद और
अजैविक खाद डाली जा सकती है, मात्रा मछलियों के लिए इस्तेमाल किए
गए जहर पर निर्भर करती है। यदि महुआ ऑयल केक का इस्तेमाल मछलियों के लिए जहर के
तौर पर किया गया है, तो गाय के गोबर के मिश्रण को प्रति हेक्टेयर
5 टन के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अन्य जहर के साथ उसका कोई खाद मूल्य नहीं होता। गाय का गोबर
सामान्यतौर पर 10 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल
किया जाता है। यद्यपि स्टॉकिंग से पहले करीब एक-तिहाई डोज बसल डोज की तरह इस्तेमाल
होती है और बाकी 15 दिन के हिसाब से। यूरिया और सिंगल सुपर
फॉस्फेट क्रमश: 200 किलोग्राम और 300
किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिनों
में अजैविक खाद की तरह इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
कार्प फिंगरलिंग्स
फ्राई की स्टॉकिंग
स्टॉकिंग को तय करने की दर
तालाब की उत्पादन क्षमता पर निर्भर करती है और उसी हिसाब से प्रबंधन के तरीकों को
अपनाया जाना चाहिए। पालने के तालाब में फ्राई की स्टॉकिंग की सामान्य मात्रा
प्रति हेक्टेयर 0.1 से 0.3
मिलियन होती है। यद्यपि नर्सरी वाला चरण मोनोकल्चर के लिए सीमित होता है,
पालन करने वाले चरण में विभिन्न कार्प प्रजातियों का पॉलीकल्चर
किया जाता है यानी इन सबको एक साथ पाला जाता है।
प्री-स्टॉकिंग
तालाब का प्रबंधन
फिंगरलिंग्स पालन के लिए भोजन
की दर 5 से 10 फीसदी
होनी चाहिए। यद्यपि अधिकतर मामलों में पूरक भोजन मूँगफली ऑयल केक और चावल की भूसी
का 1:1 में मिश्रण होता है। भोजन में एक गैर-पारंपरिक घटक भी
मिलाया जा सकता है। जब ग्रास कार्प को संग्रहित किया जाता है, तो उन्हें बत्तखों के खाने लायक वॉल्फिया, लेम्ना,
स्पाइरोडेला उपलब्ध कराये जाते हैं। पानी का स्तर 1.5 मीटर गहरा होना चाहिए जबकि अन्य चीजें पहले दिए गए सुझावों के हिसाब से
इस्तेमाल किए जाने चाहिए। पालन का वैज्ञानिक तरीका अपनाए जाने से फिंगरलिंग्स को
80 से 100 मिली मीटर/8 से 10 ग्राम का हो जाता है और पालन किए जाने वाले
तालाब की परिस्थितियों के तहत 70 से 90
फीसदी जीवित रहती हैं।
फ्राई पालन की
आर्थिकी
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
परिवर्तनीय लागत
|
|
1.
|
तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्य
|
5,000
|
2.
|
ब्लीचिंग पाउडर (10 पीपीएम क्लोराइड)/अन्य रसायन
|
2,500
|
3.
|
खाद और उर्वरक
|
8,000
|
4.
|
स्पॉन (प्रति मिलियन 5000 रुपये के हिसाब से 5 मिलियन)
|
25,000
|
5.
|
पूरक भोजन (10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 750 किलो)
|
7,500
|
6.
|
प्रबंधन और फसल के लिए मजदूर (100 व्यक्ति- 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से)
|
5,000
|
7.
|
विविध व्यय
|
5,000
|
कुल योग
|
58,000
|
|
ख.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
परिर्वतनीय लागत
|
58,000
|
2.
|
एक महीने के लिए 15 फीसदी प्रतिवर्ष के हिसाब से परिवर्तनीय लागत पर ब्याज
|
0.725
|
कुल
|
58,725
» 59.000
|
|
II.
|
शुद्ध आय
|
|
फ्राई से बिक्री (प्रति लाख 7000 रुपये के हिसाब से 15 लाख फ्राई)
|
1,05,000
|
|
III.
|
शुद्ध आय (कुल आय- कुल लागत)
|
46,000
|
एक मानसून सत्र में कम से कम दो
फसलें उगाई जा सकती हैं (जून से अगस्त)। इसलिए एक हेक्टेयर जल क्षेत्र में शुद्ध
आय 92,000 रुपये होगी।
फिंगरलिंग पालन
की आर्थिकी
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
परिवर्तनीय लागत
|
|
1.
|
तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्य
|
10,000
|
2.
|
ब्लीचिंग पाउडर (10 पीपीएम क्लोराइड)/अन्य टॉक्सीकेंट्स
|
2,500
|
3.
|
खाद और उर्वरक
|
3,500
|
4.
|
फ्राई (प्रति फ्राई 7000 रुपये के हिसाब से 3 लाख फ्राई)
|
21,000
|
5.
|
पूरक भोजन (प्रति टन 7000 रुपये के हिसाब से 5 टन)
|
35,000
|
6.
|
प्रबंधन और फसल के लिए मजदूरी (100 व्यक्ति- 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से)
|
5,000
|
7.
|
विविध व्यय
|
3,000
|
कुल योग
|
80,000
|
|
B.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
परिवर्तनीय लागत
|
80,000
|
2.
|
तीन महीने के लिए 15 फीसदी प्रतिवर्ष के हिसाब से परिवर्तनीय लागत पर ब्याज
|
3,000
|
कुल योग
|
83,000
|
|
II.
|
कुल आय
|
|
2.1 लाख फिंगरलिंग्स की बिक्री से 500 प्रति 1000 की दर पर
|
1,05,000
|
|
III.
|
शुद्ध आय (कुल आय-कुल लागत)
|
22,000
|
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