दोस्तों आपने अब तक मछली पालन की पहली, दूसरी और तीसरी कड़ी को पढ़ा lआज हम आप सभी
से मछली पालन की चौथी कड़ी "तटवर्ती मत्स्यपालन" के
बारे में शेयर करने जा रहे हैं l आपसे अनुरोध है कि इसे अधिक से अधिक शेयर करेंl
नोट: -
१.
मछली पालन की
पहली कड़ी "मछली उत्पादन" को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायेंl
२.
मछली पालन की
दूसरी कड़ी "मोती उत्पादन की संस्कृति" को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक
पर जायेंl
३.
मछली पालन की तीसरी " मूल्य संवर्द्धित उत्पाद" को पढने के लिए नीचे
दिए गए लिंक पर जायेंl
कीचड़ में पाया जाने वाला केकड़ा
इस शीर्षक में कीचड़ में पाये जाने वाले केकड़े के पालन की जानकारी दी गई है।
ताज़े पानी में झींगा पालन
इस भाग में ताज़े पानी में झींगा पालन का जानकारी भारतीय नदियों में की जा रही
खेती को संदर्भित करते हुए दी गई है।
सुस्थिर झींगा पालन
इस भाग में सुस्थिर झींगा पालन से मिलने वालों लाभों और उसमें बरती जाने वाली
सावधानियों से अवगत कराया गया है।
कीचड़ में पाया जाने वाला केकड़ा
निर्यात बाज़ार में अधिक माँग
होने के कारण कीचड़ में पाये जानेवाले केकड़ा बहुत ही प्रसिद्ध है। व्यापारिक स्तर
पर इसका विकास आँध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल
और कर्नाटक के तटीय इलाकों में तेजी से हो रहा है।
स्काइला जीन के केकड़ा
तटीय क्षेत्रों, नदी या समुद्र के मुहानों और स्थिर
(अप्रवाही जलाशय) में पाये जाते हैं।
I.बड़ी प्रजातियाँ:
·
बड़ी प्रजाति स्थानीय रूप से
"हरे मड क्रैब" के नाम से जानी जाती है।
·
बढ़ने के उपरांत इसका आकार
अधिकतम 22 सेंटी मीटर पृष्ठ-वर्म की चौड़ाई और
2 किलोग्राम वजन का होता है।
·
ये मुक्त रूप से पाये जाते हैं
और सभी संलग्नकों पर बहुभुजी निशान के द्वारा इसकी पहचान की जाती है।
ii.छोटी प्रजातियाँ:
·
छोटी प्रजाति "रेड
क्लॉ" के नाम से जानी जाती है।
·
बढ़ने के उपरांत इसका आकार
अधिकतम 12.7 सेंटी मीटर पृष्ठवर्म की चौड़ाई
और 1.2 किलो ग्राम वजन का होता है।
·
इसके ऊपर बहुभुजी निशान नहीं
पाये जाते हैं और इसे बिल खोदने की आदत होती है।
घरेलू और विदेशी दोनों बाजार
में इन दोनों ही प्रजातियों की माँग बहुत ही अधिक है।
वयस्क केकड़ा
केकड़ों की खेती दो विधि से की
जाती है।
i. ग्रो-आउट (उगाई) खेती
·
इस विधि में छोटे केकड़ों को 5 से 6 महीने तक बढ़ने के लिए छोड़ दिया
जाता है ताकि ये अपेक्षित आकार प्राप्त कर लें।
·
केकड़ा ग्रो-आउट प्रणाली
मुख्यतः तालाब आधारित होते हैं। इसमें मैंग्रोव (वायुशिफ-एक प्रकार का पौधा है जो
पानी में पाया जाता है) पाये भी जा सकते हैं और नहीं भी।
·
तालाब का आकार 0.5-2 हेक्टेयर तक का हो सकता है। इसके चारों ओर उचित बाँध होते
हैं और ज्वारीय पानी बदले जा सकते हैं।
·
यदि तालाब छोटा है तो घेराबंदी
की जा सकती है। प्राकृतिक परिस्थितियों के वश में जो तालाब हैं उस मामले में बहाव
क्षेत्र को मजबूत करना आवश्यक होता है।
·
संग्रहण के लिए 10-100 ग्राम आकार वाले जंगली केकड़ा के बच्चों का उपयोग किया
जाता है।
·
कल्चर की अवधि 3-6 माह तक की हो सकती है।
·
संग्रहण दर सामान्यतया 1-3 केकड़ा प्रति वर्गमीटर होती है। साथ में पूरक भोजन (चारा)
भी दिया जाता है।
·
फीडिंग के लिए अन्य स्थानीय
उपलब्ध मदों के अलावे ट्रैश मछली (भींगे वजन की फीडिंग दर- जैव-पदार्थ का 5% प्रतिदिन होता है) का उपयोग किया जाता है।
·
वृद्धि और सामान्य स्वास्थ्य की
निगरानी के लिए तथा भोजन दर समायोजित करने के लिए नियमित रूप से नमूना (सैम्पलिंग)
देखी जाती है।
·
तीसरे महीने के बाद से व्यापार
किये जाने वाले आकार के केकड़ों की आंशिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस
प्रकार, "भंडार में कमी आने से"
आपस में आक्रमण और स्वजाति भक्षण के अवसर में कमी आती है और उसके जीवित बचे रहने
के अनुपात या संख्या में वृद्धि होती है।
ii. फैटनिंग (मोटा/कड़ा करना)
मुलायम कवच वाले केकड़ों की
देखभाल कुछ सप्ताहों के लिए तब तक की जाती है जब तक उसके ऊपर बाह्य कवच कड़ा न हो
जाए। ये "कड़े" केकड़े स्थानीय लोगों के मध्य "कीचड़" (मांस)
के नाम से जाने जाते हैं और मुलायम केकड़ों की तुलना में तीन से चार गुणा अधिक
मूल्य प्राप्त करते हैं।
(क) तालाब में केकड़ा को बड़ा करना
·
0.025-0.2 हेक्टेयर के आकार तथा 1
से 1.5 मीटर की गहराई वाले छोटे ज्वारीय
तालाबों में केकड़ों को बड़ा किया जा सकता है।
·
तालाब में मुलायम केकड़े के
संग्रहण से पहले तालाब के पानी को निकालकर, धूप
में सूखाकर और पर्याप्त मात्रा में चूना डालकर आधार तैयार किया जाता है।
·
बिना किसी छिद्र और दरार के
तालाब के बाँध को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है।
·
जलमार्ग पर विशेष ध्यान दिया
जाता है क्योंकि इन केकड़ों में इस मार्ग से होकर बाहर निकलने की प्रवृति होती है।
पानी आने वाले मार्ग में बाँध के अंदर बाँस की बनी चटाई लगाई जानी चाहिए।
·
तालाब की घेराबंदी बाँस के पोल
और जाल की सहायता से बाँध के चारों ओर की जाती है जो तालाब की ओर झुकी होती है
ताकि क्रैब बाहर नहीं निकल सके।
·
स्थानीय मछुआरों/ केकड़ा
व्यापारियों से मुलायम केकड़े एकत्रित किया जाता है और उसे मुख्यतः सुबह के समय
केकड़ा के आकार के अनुसार 0.5-2 केकड़ा/वर्गमीटर की दर से तालाब
में डाल दिया जाता है।
·
550 ग्राम या उससे अधिक वजन वाले
केकड़ों की माँग बाजार में अधिक है। इसलिए इस आकार वाले समूह में आने वाले केकड़ों
का भंडारण करना बेहतर है। ऐसी स्थिति में भंडारण घनत्व 1 केकड़ा/
वर्गमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
·
स्थान और पानी केकड़ा की
उपलब्धता के अनुसार तालाब में पुनरावृत भंडारण और कटाई के माध्यम से "उसे
बड़ा बनाने" के 6-8 चक्र पूरे किये जा सकते हैं।
·
यदि खेती की जानेवाली तालाब
बड़ा है तो तालाब को अलग-अलग आकार वाले विभिन्न भागों में बाँट लेना उत्तम होगा
ताकि एक भाग में एक ही आकार के केकड़ों का भंडारण किया जा सके। यह भोजन के साथ-साथ
नियंत्रण व पैदावार के दृष्टिकोण से भी बेहतर होगा।
·
जब दो भंडारण के बीच का अंतराल
ज्यादा हो, तो एक आकार के केकड़े, एक ही भाग में रखे जा सकते हैं।
·
किसी भी भाग में लिंग अनुसार
भंडारण करने से यह लाभ होता है कि अधिक आक्रामक नर केकड़ों के आक्रमण को कम किया
जा सकता है। पुराने टायर, बाँस की टोकड़ियाँ, टाइल्स आदि जैसे रहने के पदार्थ उपलब्ध कराना अच्छा रहता है। इससे आपसी
लड़ाई और स्वजाति भक्षण से बचा जा सकता है।
१)केकड़े के मोटे होने का तालाब
२)तालाब के "अंतर्प्रवाह
मार्ग" को मजबूत करने के लिए बाँस की चटाई लगाना
(ख) बाड़ों और पिजरों में मोटा करना
·
बाड़ों, तैरते जाल के पिजरों या छिछले जलमार्ग में बाँस के पिंजरों और
बड़े श्रिम्प (एक प्रकार का केकड़ा) के भीतर अच्छे ज्वारीय पानी के प्रवाह में भी
उसे मोटा बनाने का काम किया जा सकता है।
·
जाल के समान के रूप में
एच.डी.पी.ई, नेटलॉन या बांस की दरारों का प्रयोग
किया जा सकता है।
·
पिंजरों का आकार मुख्यतः 3 मीटर x 2 मीटर x 1 मीटर होनी चाहिए।
·
इन पिंजरों को एक ही कतार में
व्यवस्थित किया जाना चाहिए ताकि भोजन देने के साथ उसकी निगरानी भी आसानी से की जा
सके।
·
पिंजरों में 10 केकड़ा/ वर्गमीटर और बाड़ों में 5 केकड़ा/
वर्गमीटर की दर से भंडारण की सिफारिश की जाती है। चूंकि भंडारण दर अधिक है इसलिए
आपस में आक्रमण को कम करने के लिए भंडारण करते समय किले के ऊपरी सिरे को हटाया जा
सकता है।
·
इस सब के बावजूद यह विधि उतनी
प्रचलित नहीं है जितनी तालाब में "केकड़ों को मोटा" बनाने की विधि।
इन दोनों विधियों से केकड़ा को
मोटा बनाना अधिक लाभदायक है क्योंकि जब इसमें भंडारण सामान का प्रयोग किया जाता है
तो कल्चर अवधि कम होती है और लाभ अधिक होता है। केकड़े के बीज और व्यापारिक चारा
उपलब्ध नहीं होने के कारण भारत में ग्रो-आउट कल्चर प्रसिद्ध नही है।
केकड़ों को चारा के रूप में
प्रतिदिन ट्रैश मछली, नमकीन पानी में पायी जाने वाली सीपी
या उबले चिकन अपशिष्ट उन्हें उनके वजन के 5-8% की दर से
उपलब्ध कराया जाता है। यदि चारा दिन में दो बार दी जाती है तो अधिकतर भाग शाम को
दी जानी चाहिए।
नीचे दी गई सीमा के अनुसार पानी
की गुणवत्ता के मानकों का ख्याल रखा जाएगा:
लवणता
|
15-25%
|
ताप
|
26-30° C
|
ऑक्सीजन
|
> 3 पीपीएम
|
पीएच
|
7.8-8.5
|
·
कड़ापन के लिए नियमित अंतराल पर
केकड़ों की जाँच की जानी चाहिए।
·
केकड़ों को इकट्ठा करने का काम
सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए।
·
इकट्ठा किये गये केकड़ों से
गंदगी और कीचड़ निकालने के लिए इसे अच्छे नमकीन पानी में धोना चाहिए और इसके पैर
को तोड़े बिना सावधानीपूर्वक बाँध दी जानी चाहिए।
·
इकट्ठा किये गये केकड़ों को नम
वातावरण में रखना चाहिए। इसे धूप से दूर रखना चाहिए क्योंकि इससे इसकी जीवन क्षमता
प्रभावित होती है।
१.इकट्ठा किये गये केकड़े
२.इकट्ठा किये गये एक कठोर
कीचड़नुमा
केकड़ा (> 1 किलोग्राम)
कीचड़ में पलने वाले केकड़ों को
बड़ा करने से संबंधित अर्थव्यवस्था (6 फसल/वर्ष),
(0.1 हेक्टेयर ज्वारीय तालाब)
क . वार्षिक निर्धारित लागत
|
रुपये
|
तालाब (पट्टा राशि)
|
10,000
|
जलमार्ग (स्लुइस) गेट
|
5,000
|
तालाब की तैयारी, घेराबंदी और मिश्रित शुल्क
|
10,000
|
ख . परिचालनात्मक लागत ( एकल फसल )
|
|
1. पानी केकड़े का मूल्य (400 केकड़ा, 120 रुपये/ किलोग्राम की दर से)
|
36,000
|
2. चारा लागत
|
10,000
|
3. श्रमिक शुल्क
|
3,000
|
एक फसल के लिए कुल
|
49,000
|
6 फसलों के लिए कुल
|
2,94,000
|
ग . वार्षिक कुल लागत
|
3,19,000
|
घ . उत्पादन और राजस्व
|
|
केकड़ा उत्पादन का प्रति चक्र
|
240 किलोग्राम
|
6 चक्रों के लिए कुल राजस्व (320 रुपये / किलोग्राम )
|
4,60,800
|
च . शुद्ध लाभ
|
1,41,800
|
·
यह अर्थव्यवस्था एक उपयुक्त
आकार के तालाब के लिए दी गई है जिसका प्रबंधन कोई भी छोटा या सीमांत किसान कर सकता
है।
·
चूंकि केकड़ों के भंडारण आकार
के संबंध में करीब 750 ग्राम का सुझाव मिला है इसलिए
भंडारण घनत्व कम (0.4 संख्या/वर्गमीटर) होता है।
·
प्रथम सप्ताह के लिए चारा देने
का दर कुल जैवसंग्रह का 10% होता है और बाकी की अवधि के लिए 50%
। चारा की बर्बादी को बचाने और बढ़िया गुणवत्ता वाले पानी बनाये
रखने के लिए खाना देने के ट्रे का प्रयोग करना बेहतर होता है।
·
अच्छे से प्रबंधित किसी भी
तालाब में 8 "मोटा बनाने" के चक्र पूरे
किये जा सकते हैं और इसमें 80-85% केकड़ों के जीवित बचने की
उम्मीद रहती है। (यहाँ पर विचार के लिए सिर्फ़ 75 % केकड़ों
के बचने की उम्मीद के साथ 6 चक्रों को लिया गया है)।
स्त्रोत
केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधना संस्थान, कोचीन
ताज़े पानी में झींगा पालन
- ताज़े
पानी में झींगा पालन (भारतीय नदी के झींगा)
- भारतीय
नदियों के झींगों के लिए ग्रोन आउट पालन विधि
ताज़े पानी में झींगा पालन (भारतीय नदी के झींगा)
ताज़े पानी के
झींगा के बारे में
ताजा पानी का झींगा
(मैक्रोब्रैकियम माल्कोमसोनी) दूसरे स्थान पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले झींगा है
जो बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली भारतीय नदियों में पाये जाते हैं। मोनोकल्चर
प्रणाली के अंतर्गत 8 महीनों में प्रति हेक्टेयर 750-1000 किलोग्राम की दर से झींगा का उत्पादन किया जा चुका है। यह भारतीय मेजर
कार्प और चीनी कार्प के साथ पॉलीकल्चर के लिए उपयुक्त प्रजाति है, जो 400 किलोग्राम झींगा और 3000 किलो कार्प प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर पैदावार दे सकते हैं। चूंकि इसके
लिए बीज प्राकृतिक संसाधनों से नहीं आते, बड़े पैमाने पर
सालभर उत्पादन नियंत्रित स्थितियों में बेहद महत्त्वपूर्ण है ताकि आपूर्ति बनी
रहे। बड़े पैमाने पर बीज उत्पादन और पालन की तकनीकें अब किसानों व उद्यमियों ने
अपना ली हैं और वे इस क्षेत्र में अब अपने पैर फैला रहे हैं।
ब्रुडस्टॉक का
प्रबंधन
बीज उत्पादन के लिए ब्रुडस्टॉक
और मादा अनिवार्य तत्त्व हैं। इन प्रजातियों में प्रजनन क्षमता का विकास
कृषि-जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। गंगा, हुगली
और महानदी में परिपक्वता व प्रजनन मई में शुरू होकर अक्तूबर तक बना रहता है जबकि
गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में यह अप्रैल से नवम्बर के बीच
चलता है। तालाब के भीतर यौनिक परिपक्वता अधिकतम 60-70 मिली
मीटर के आकार का होने के बाद ही हासिल होती है। बेरीयुक्त मादाएँ सालभर कुछ
तालाबों में पाई जाती हैं। अगस्त-सितंबर के दौरान इनकी आबादी ज्यादा होती है और
इस अवधि में उनमें अंडों की संख्या अच्छी होती है (8000-80,000)। एक मौसम में झींगे तीन से चार बार बच्चे पैदा करते हैं। सफल सामुदायिक
प्रजनन और सालभर उत्पादन, नियंत्रित स्थितियों में संभव है
और इसके लिए एयर लिफ्ट बायो-फिल्टर री-सर्कुलेटरी प्रणाली की जरूरत होती है।
स्पानीकरण और
लारवा पालन
एक भारतीय झींगा पालन केंद्र का
परिदृश्य
परिपक्व नर झींगे में मेटिंग
प्री-मेटिंग मोल्ट के तत्काल बाद संभव होती है जबकि स्पानीकरण मेटिंग के बाद
होता है। अंडों को सेने की अवधि 10 से 15 दिन होती है जो पानी के आदर्श तापमान 28-30 डिग्री
सेंटीग्रेड पर निर्भर करता है। निचले तापमान पर यह 21 दिन से
ज्यादा हो जाता है। पूरी तरह विकसित जोइया अपने शरीर को खींचकर अंडे के खोल को
फोड़ कर बाहर निकल आता है और तैरने लगता है।
लारवा को पालने की विभिन्न
तकनीकें विकसित की गई हैं- स्थिर, फ्लो-थ्रू,
साफ या हरा पानी, बंद या आधा बंद, वितरण प्रणाली के साथ या उसके बगैर। हरे पानी की तकनीक में अन्य के
मुकाबले लारवा के बाद का उत्पादन 10 से 20 फीसदी ज्यादा होता है। उच्च पीएच और अनियंत्रित काई के विकास के कारण
मृत्यु दर ज्यादा होती है। हरे पानी में चारे की अधिकता के कारण वयस्क
आर्टेमिया की बहुतायत हो जाती है जो माध्यम में अमोनिया की मात्रा को बढ़ा देता
है। पोस्ट-लारवा का बड़ी संख्या में उत्पादन एयरलिफ्ट बायो फिल्टर
री-सर्कुलेटरी प्रणाली से संभव हो सकता है। लारवा को इस अवस्था में आने के लिए 11 विकास चरणों से 39-60 दिनों के भीतर गुजरना पड़ता
है जिसमें पानी की लवणता 18 से 20
फीसदी और तापमान 28 से 31 डिग्री होनी
चाहिए। इसकी क्षमता दस से बीस पोस्ट-लारवा प्रति लीटर होनी चाहिए।
विभिन्न माध्यमों में पानी की
गुणवत्ता बनाये रखने में एयर लिफ्ट ने कामयाब नतीजे दिए हैं जहाँ उत्पादन भी अच्छा
रहा है। भौतिक-रासायनिक मानक जो उत्पादन को प्रभावित करते हैं, उनमें पालन का माध्यम, तापमान, पीएच, घुली हुई ऑक्सीजन, कुल
कठोरता, कुल क्षारीयता, लवणता और
अमोनिया युक्त नाइट्रोजन आदि हैं। लारवा उत्पादन के लिए इनके मानक निम्न प्रस्तावित
हैं- 28-30 डिग्री सेंटीग्रेड, 7.8-8.2, 3000-4500 पीपीएम, 80-150 पीपीएम, 18 से
20 फीसदी और 0.02 से 0.12 पीपीएम।
लारवा का चारा
लारवा पालन में चारे के रूप में
आर्टेमिया नॉपली, सूक्ष्म जूप्लांकटन, खासकर क्लेडोसेरान, कोपेपॉड, रोटिफर,
झींगों और मछलियों का माँस, केंचुए, घोंघे, कीड़े, एग कस्टर्ड,
मुर्गी/बकरे के बिसरा के कटे हुए टुकड़े आदि का इस्तेमाल किया जाता
है। इनमें आर्टेमिया सबसे बेहतर चारा है। यह विकास के पहले चरण में उपलब्ध कराया
जाता है जिसकी मात्रा दिन में दो बार 15 दिनों तक 1 ग्राम प्रति 30,000 लारवा होती है, जब तक कि वे छठवें चरण तक न आ जाएं। इसके बाद इसे दिन में एक बार एग कस्टर्ड,
मीट, कीड़ों आदि के साथ दिया जाता है।
पोस्ट-लारवा का
उत्पादन
इसकी पैदावार कहीं मुश्किल होती
है क्योंकि इनकी रेंगने की आदत होती है। इसीलिए टर्न डाउन और ड्रेन की विधि बाहर
निकालने के लिए अपनाई जाती है। पोस्ट लारवा चरण तक आने में लंबी अवधि लगने के
कारण उपर्युक्त तरीके न तो उपयोगी हैं और न ही सुरक्षित। इसके अलावा लारवल टैंक
में पोस्ट लार्वा की उपस्थिति से विकसित लार्वा का विकास प्रभावित होता है। इसीलिए, इन्हें बाहर निकालने के लिए एक आदर्श उपकरण की जरूरत पड़ती
है। इसके लिए स्ट्रिंग शेल बनाया गया है जिसे सफल तरीके से चरणबद्ध रूप से पोस्ट
लार्वा निकाला जाता है। इनके बचने और उत्पादन की दर 10 से 20 प्रति लीटर होती है।
पोस्ट लार्वा का
पालन
भारतीय नदियों के झींगों के
पोस्ट लारवा
झींगों का अधिकतम विकास, उत्पादन और बचाव नर्सरी में पाले गए इनके बच्चों को तालाब
में छोड़कर हासिल किया जा सकता है, बजाय ताजा पोस्ट लार्वा
भंडारण के। पोस्ट लार्वा ताजे पानी के अनुकूल धीरे-धीरे बनते हैं। स्वस्थ बच्चों
के विकास के लिए आदर्श लवणता 10 फीसदी होनी चाहिए।
पोस्ट लार्वल पालन पर्याप्त
हवा की सुविधा वाले हैचरी के भीतर स्थित तालाबों में बायोफिल्टर रीसर्कुलेटरी
प्रणाली से किया जा सकता है। इसके पालन में भंडारण का घनत्व, पानी की गुणवत्ता और चारा प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 10 से 15 पोस्ट लार्वा प्रति लीटर का घनत्व आदर्श
है। चारे में अंडे के कस्टर्ड के अलावा ताजे पानी के सीप का काटा हुआ माँस ज्यादा
प्रभावी पाया गया है। पानी का तापमान, पीएच, घुली हुई ऑक्सीजन और अमोनिया क्रमश: 27.5-30 डिग्री,
7.8-8.3, 4.4-5.2 पीपीएम और 0.02-0.03 पीपीएम
होने चाहिए।
भारतीय नदियों के झींगों के लिए ग्रोन आउट पालन विधि
यह विधि ताजे पानी की मछली के
जैसी है। चूंकि, झींगे एक तालाब से दूसरे तालाब में
जा सकते हैं, इसलिए तालाब के किनारे पानी के स्तर से आधा
मीटर ऊपर होने चाहिए। तालाब की तलहटी बलुई मिट्टी की सबसे अच्छी मानी जाती है।
जिन तालाबों में से पानी निकालना संभव न हो, उसमें से जंगली
खरपतवार हटाने के लिए पारंपरिक मछली नाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
अर्द्धसघन उत्पादन के लिए भंडारण घनत्व 30 हजार से 50 हजार प्रति हेक्टेयर प्रस्तावित है। ज्यादा सघन कृषि के लिए ऐसे तालाब
होने चाहिए जिसमें पानी की आवाजाही हो सके और जहाँ भंडारण घनत्व 1 लाख तक जा सके। झींगों के पालन में उनके बचे रहने के लिए तापमान सबसे
जरूरी चीज है जो 35 से ऊपर और 14 से
नीचे खतरनाक हो जाता है। आदर्श स्थिति 29-31 डिग्री
सेंटीग्रेड है।
नर झींगे, मादाओं की अपेक्षा तेजी से बढ़ते हैं। पूरक आहार के रूप में
मूँगफली के तेल का केक और मछली बराबर अनुपात में दिए जाते हैं। 30 से 50 हजार के भंडारण घनत्व वाले तालाब में 500 से 1000 किलो प्रति हेक्टेयर झींगा छह महीने में
पा लिया जाता है। पॉली कल्चर में 10 हजार से 20 हजार की भंडारण क्षमता वाले माल्कमसोनी और कार्प के लिए ढाई हजार से
साढ़े तीन हजार वाले तालाब में 300 से 400 किलो झींगा तथा 2000 से 3000
किलो कार्प उपजाए जा सकते हैं।
खर्च
हैचरी पर आने
वाला खर्च (20 लाख की क्षमता)
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
स्थायी
पूँजी
|
|
1.
|
ब्रुड स्टॉक
तालाब का निर्माण (0.2 हेक्टेयर के आकार वाले 2 तालाब)
|
50,000
|
2.
|
हैचरी छप्पर
(10 मीटर x 6 मीटर)
|
2,20,000
|
3.
|
लार्वा का
पालन टैंक (12 इकाई सीमेंट से बने हुए 1000 लीटर की क्षमता वाला)
|
1,00,000
|
4.
|
पीवीसी
पाइप के साथ निकासी प्रणाली
|
20, 000
|
5.
|
बोर-वेल
|
40, 000
|
6.
|
जल संग्रहण
टैंक (20,000 लीटर की क्षमता)
|
40, 000
|
7.
|
इलैक्ट्रिकल
इंस्टॉलेशन
|
30, 000
|
8.
|
एयर- ब्लोअर्स
(5एचपी, 2)
|
1,50,000
|
9.
|
एरेशन पाइप
नेटवर्किंग प्रणाली
|
40,000
|
10.
|
जेनरेटर (5 केवीए)
|
60,000
|
11.
|
पानी के
पम्प (2 एचपी)
|
30,000
|
12.
|
1. फ्रिज
|
10,000
|
13.
|
1. विविध व्यय
|
30,000
|
कुल योग
|
8,20,000
|
|
ख.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
|
1.
|
भोजन समेत
ब्रुडस्टॉक का विकास
|
50,000
|
2.
|
समुद्र के
पानी का आवागमन
|
20,000
|
3.
|
भोजन
(आर्टेमिया और तैयार किया गया भोजन)
|
2,30,000
|
4.
|
रसायन और
दवाइयाँ
|
10,000
|
5.
|
बिजली और
ईंधन
|
40,000
|
6.
|
मजदूरी (एक
हैचरी प्रबंधक और 4 कुशल मजदूर)
|
1,80,000
|
7.
|
विविध
खर्चे
|
50,000
|
कुल योग
|
5,80,000
|
|
C.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
5,80,000
|
2.
|
स्थायी
पूँजी पर गिरावट लागत 10 फीसदी वार्षिक
|
82,000
|
3.
|
स्थायी
पूँजी पर ब्याज दर 15 फीसदी प्रतिवर्ष
|
1,23,000
|
कुल योग
|
785,000
|
|
II.
|
शुद्ध आय
|
|
20 लाख बीज की बिक्री (500 रुपये प्रति 1000 पीएल)
|
10,00,000
|
|
III.
|
शुद्ध आय
(कुल आय- कुल लागत)
|
2,15,000
|
अर्द्ध-सघन
ग्रो-आउट कल्चर की आर्थिकी (1 हेक्टेयर तालाब)
क्रम संख्या |
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
|
1.
|
तालाब
पट्टे पर लेने का मूल्य
|
10,000
|
2.
|
उर्वरक और
चूना
|
6,000
|
3.
|
झींगा बीज
(50,000/प्रति हेक्टेयर; 500/1000 रुपये
|
25,000
|
4.
|
पूरक भोजन
|
40,000
|
5.
|
मजदूर (1 दिन के लिए एक मजदूर 50 रुपये में)
|
14,000
|
6.
|
फसल और
विपणन व्यय
|
5,000
|
7.
|
विविध व्यय
|
5,000
|
|
कुल योग
|
1,05,000
|
ख.
|
कुल योग
|
|
1.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
1,05,000
|
2.
|
छह महीने
के लिए 15 फीसदी की दर से परिर्तनीय
लागत पर ब्याज
|
7,875
|
कुल योग
|
1,12,875
|
|
II.
|
शुद्ध आय
|
|
|
1000 किलो झींगे की बिक्री 150 रुपये प्रति किलो
|
1,50,000
|
III.
|
शुद्ध आय
(कुल आय-कुल लागत)
|
37,225
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अर्द्ध-सघन
ग्रो-आउट पॉलीकल्चर की आर्थिकी (1 हेक्टेयर तालाब)
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
A.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
|
1.
|
तालाब को
पट्टे पर लेने का मूल्य
|
10,000
|
2.
|
उर्वरक और
चूना
|
6,000
|
3.
|
झींगा
बीज (10000/हेक्टेयर; 500/1000 रुपये के हिसाब से)
|
5,000
|
4.
|
मछली का
बीज (3500/हेक्टेयर)
|
1,500
|
5.
|
पूरक भोजन
|
50,000
|
6.
|
मजदूर (1 दिन के लिए एक मजदूर 50 रुपये में)
|
15,000
|
7.
|
फसल कटाई
का मूल्य
|
5,000
|
8.
|
विविध व्यय
|
10,000
|
कुल योग
|
1,02,500
|
|
B.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
1,02,500
|
2.
|
छह महीने
के लिए 15 फीसदी प्रतिवर्ष के हिसाब से
परिवर्तनीय लागत पर ब्याज
|
7,688
|
कुल योग
|
1,10,188
|
|
II.
|
कुल आय
|
|
1.
|
झींगा की
बिक्री (150 रूपये के हिसाब से 400 किलो)
|
60,000
|
2.
|
मछली की
बिक्री (30 रूपये के हिसाब से 3000 किलो)
|
90,000
|
कुल
|
1,50,000
|
|
III.
|
शुद्ध आय (कुल
आय- कुल लागत)
|
39,812
|
स्रोत: सेंट्रल
इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, उड़ीसा
सुस्थिर झींगा पालन
- सुस्थिर
झींगा पालनः अच्छी प्रबन्ध प्रणाली
- झींगे
की सुस्थिर खेतीः कुछ सावधानियाँ
सुस्थिर झींगा पालनः अच्छी प्रबन्ध प्रणाली
1. संग्रहण से पहले तालाब को धूप में
सुखाएँ व तैयार करें
मत्स्यपालन के लिए तालाब तैयार
करना पहला अनिवार्य कदम है। जमीन की गंदगी को दूर करने के लिए टिलिंग, जुताई एवं धूप में सुखायें। इसके बाद, कीट
तथा परभक्षी जीव हटाएँ। तालाब के जल तथा मिट्टी में PH तथा
पोषकों की एकदम उचित सान्द्रता को बनाये रखने के लिए चूना, कार्बनिक
खाद तथा अकार्बनिक खाद डालें।
2. गाँव की सुविधाओं तथा मत्स्यपालन के
बीच प्रतिरोधक क्षेत्र कायम करना
मछली पकड़ने, लाने व ले जाने के स्थलों तथा अन्य लोक-सुविधाओं तक के लोगों
की आवाजाही को सुलभ बनाकर, झींगे के दो खेतों के बीच उचित
दूरी सुनिश्चित की जा सकती है। दो छोटे खेतों के बीच कम-से-कम 20 मीटर की दूरी रखा जाना चाहिए। बड़े खेतों के लिए, यह
दूरी 100 से 150 मीटर तक होनी चाहिए।
इसके अलावा, खेतों तक लोगों के पहुँचने के लिए वहाँ खाली
स्थान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
3. अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाबों एवं
बाहरी नहरों में, समुद्री शैवाल, सदाबहार
पौधे (मैंग्रोव) और सीपी उगाना
झींगे के खेतों से दूषित पानी
की निकासी स्वच्छ जल में करने के बजाय उसका उपयोग द्वितीयक खेती विशेष रूप से मसेल, समुद्री घास एवं फिन फिशर बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए।
इससे पानी की गुणवत्ता बढ़ाने, कार्बनिक भार को कम करने और
किसानों को अतिरिक्त फसल प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
4. नियमित अंतराल पर मिट्टी तथा व्यर्थ
जल की गुणवत्ता की जाँच करें
जल की गुणवत्ता की यथेष्ट
स्थिति बनाये रखने के लिए नियमित अंतराल पर मिट्टी तथा जल के मानदण्डों की नियमित
जाँच की जानी चाहिए। पानी बदलते समय, पानी
की गुणवत्ता में बहुत अधिक बदलाव न हों, इस बात के लिए विशेष
सावधानी बरतें, क्योंकि इससे जीवों पर ज़ोर पड़ता है। घुलनशील
ऑक्सीजन की सान्द्रता सुबह जल्दी मापें। यह सुनिश्चित करें कि जल स्रोत प्रदूषण
मुक्त हों।
5. अण्डों से लार्वा निकलने के बाद
अच्छी गुणवत्ता के झींगे का उपयोयग करें
केवल पंजीकृत अण्डा प्रदाय
केन्द्र से ही स्वस्थ एवं रोग-मुक्त बीज का उपयोग करें। बीजों के स्वास्थ्य की
स्थिति जाँचने के लिए पीसीआर जैसी मानक विधियों का ही पालन करें। प्राकृतिक
स्रोतों से इकट्ठा किये गये बीज का उपयोग नहीं करें। ये खुले जल में प्रजातियों की
विविधता को प्रभावित करेंगे।
6. परा लार्वा को कम घनत्व पर भण्डारण
करें
तालाब में प्रदूषण उत्पन्न होने
से भण्डारण के घनत्व पर प्रभाव पड़ता है। भण्डारण के अधिक घनत्व से, बढ़ाये जा रहे जीवों पर भी ज़ोर पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। हमेशा न्यूनतम घनत्व वाले
भण्डारण की सिफारिश की जाती है। इसके अंतर्गत पारम्परिक तालाब में 6 प्रति वर्गमीटर एवं बडे तालाबों में 10 प्रति वर्ग मीटर
के घनत्व सीमा को आदर्श माना जाता है।
झींगे की सुस्थिर खेतीः कुछ सावधानियाँ
1. मैंग्रोव के क्षेत्र में झींगे का
खेत नहीं बनाएँ
मैंग्रोव, मछलियों की अधिक महत्त्वपूर्ण किस्मों के फलने-फूलने के जगह
होते हैं। वे मिट्टी तथा उस स्थान को पोषक तत्त्व बाँधने में मदद करते हैं। वे
चक्रवात निरोधक का भी कार्य करते हैं। वे कई प्रदूषक तत्त्वों को रोकने के लिए
प्राकृतिक जैविक फिल्टर भी होते हैं। किसी मैंग्रोव के क्षेत्र में कभी भी झींगा
पालने नहीं करें क्योंकि यह स्थानीय समुदाय के लिए भविष्य में कई समस्याएँ पैदा कर
सकता है।
2. प्रतिबंधित दवा,रसायनों एवं एंटीबायोटिक्स का उपयोग न करें
संतुलित पोषण तथा तालाब के
अच्छे प्रबन्ध द्वारा झींगे को स्वस्थ रखें तथा बीमारियों से बचाएँ। यह इस बात से
कहीं बेहतर है कि पहले लापरवाही कर बीमारी होने दें, फिर
दवाइयों, रसायनों एवं एंटीबायोटिक्स द्वारा उपचार करें।
इनमें से कुछ पदार्थ, जीव के माँस में इकट्ठा हो सकती है तथा
खाने वाले के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं। झींगे की खेती में
एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से प्रतिबंधित है। उसका उपयोग किसी भी
परिस्थिति में नहीं करें।
3. झींगे के खेत में भण्डारण के लिए
प्राकृतिक परा - लार्वा इकट्ठा नहीं करें
जंगल से इकट्ठा किये गये बीजों
का झींगे के तालाबों में भण्डारण नहीं करें। जंगली बीज का संग्रहण, खुले जल में फिन तथा शेलफिश की जैव-विविधता को प्रभावित करता
है। प्राकृतिक बीज, बीमारी का वाहक भी हो सकता है। इससे
अण्डवृद्धि के स्थान पर इकट्ठे किये गये स्वस्थ बीज संक्रमित हो सकते हैं।
4. कृषि कार्य वाले खेत को झींगे के
खेत में परिवर्तित नहीं करें
कृषि कार्य वाले क्षेत्र का
उपयोग झींगे की खेती के लिए नहीं करें- यह प्रतिबंधित है। तटीय क्षेत्र प्रबन्ध
योजना बनाते समय, विभिन्न उद्देश्यों के लिए उचित भूमि
की पहचान के लिए विभिन्न सर्वेक्षण किये जाने चाहिए। केवल किनारे की जमीन जो कृषि
कार्य के लिए उपयुक्त न हों, झींगे की खेती के लिए आवंटित की
जानी चाहिए।
5. झींगे की खेती के लिए भूजल का
इस्तेमाल नहीं करें
तटीय क्षेत्रों में भूजल
मूल्यवान स्रोत है। इसे कभी भी झींगे की खेती के लिए नहीं निकालें- यह कड़ाई से
प्रतिबंधित है। झींगे के खेतों से प्रदूषण तथा जमीन व पेयजल के स्रोतों का क्षारपन
उत्पन्न होने से भी बचाया जाना चाहिए। साथ ही, अनिवार्य
रूप से कृषि भूमि, गाँव और स्वच्छ जल के कुँओं के बीच कुछ
खाली स्थान रखें।
6. तालाबों का दूषित जल कभी भी सीधे
खुले जल में नहीं छोडें
झींगे के खेतों के दूषित जल को
खाड़ी या नदी के मुहाने से समुद्र में छोड़ने से पहले उपचारित करें। झींगे के खेतों
में दूषित पानी की गुणवत्ता के लिए बनाये गये मानकों का पालन किया जाना चाहिए।
खुले जल की गन्दगी को रोकने के लिए बनाये गये मानकों की नियमित निगरानी की जानी
चाहिए। बड़े खेत (50 हेक्टेयर से अधिक) में प्रवाह उपचार
प्रणाली स्थापित किया जाना जरूरी है।
स्रोत: बिरसा कृषि
विश्वविद्यालय, काँके, राँची- 834006
केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधना संस्थान,
कोचीन सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर,
उड़ीसा