दोस्तों आज हम आप सभी से मछली पालन की पांचवी कड़ी
"अंतर्देशीय मछली पालन" के बारे
में शेयर करने जा रहे हैं l आपसे अनुरोध है
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नोट: -
१. मछली पालन की पहली कड़ी "मछली उत्पादन" को पढने के लिए नीचे दिए गए
लिंक पर जायेंl
२. मछली पालन की दूसरी कड़ी "मोती उत्पादन की संस्कृति" को पढने के लिए
नीचे दिए गए लिंक पर जायेंl
३. मछली पालन की तीसरी कड़ी " मूल्य
संवर्द्धित उत्पाद" को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायेंl
४. मछली पालन की चौथी कड़ी "तटवर्ती
मत्स्यपालन" को पढने
के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायेंl
अंतर्देशीय
मछली पालन
शीर्षक से स्पष्ट है कि इस भाग में सजावटी मछलियों के पालन के विभिन्न
व्यवसायिक पहलुओं की जानकारी दी गई है।
अंतर्देशीय मछली पालन के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश में किये जा रहे ट्राउट
उत्पादन की जानकारी दी गई है।
सजावटी
मछलियों का पालन
सजावटी मछलियों को रखना और उसका प्रसार एक दिलचस्प
गतिविधि है जो न केवल खूबसूरती का सुख देती है बल्कि वित्तीय अवसर भी उपलब्धि
कराती है। विश्व भर की विभिन्न जलीय पारिस्थितिकी से करीब 600 सजावटी मछलियों की प्रजातियों की जानकारी प्राप्त है। भारत
सजावटी मछलियों के मामले में 100 से ऊपर देसी प्रजातियों के
साथ अत्यधिक सम्पन्न है, साथ ही विदेशी प्रजाति की मछलियाँ
भी यहाँ पैदा की जाती हैं।
देसी और विदेशी ताजा जल प्रजातियों के बीच जिन
प्रजातियों की माँग ज्यादा रहती है, व्यावसायिक
इस्तेमाल के लिए उनका प्रजनन और पालन किया जा सकता है। व्यावसायिक किस्मों के
तौर पर प्रसिद्ध और आसानी से उत्पादन की जा सकने वाली प्रजातियाँ एग लेयर्स और
लाइवबीयरर्स के अंतर्गत आ रही हैं।
लाइवबीयरर प्रजातियाँ
·
गप्पीज (पियोसिलिया
रेटिकुलेटा)
·
मोली (मोलीनेसिया स्पीशिज)
·
स्वॉर्ड टेल (जाइफोफोरस स्पीशिज)
·
प्लेटी
एग लेयर्स
·
गोल्डफिश (कैरासियस ओराटस)
·
कोई कार्प (सिप्रिनस कारपियो की
एक किस्म)
·
जेब्रा डानियो (ब्रेकिदानियो
रेरियो)
·
ब्लैक विंडो टेट्रा
(सिमोक्रो-सिम्बस स्पीशिज)
·
नियोन टेट्रा (हीफेसो-ब्रीकोन इनेसी)
·
सर्पा टेट्रा (हाफेसोब्रीकोन
कालिसटस)
अन्य
·
बबल्स- नेस्ट बिल्डर्स
·
एंजलफिश (टेरोफाइलम स्केलेयर)
·
रेड-लाइन तारपीडो मछली (पनटियस
डेनीसोनी)
·
लोचेज (बोटिया प्रजाति)
·
लीफ-फिश (ननदस ननदस)
·
स्नेकहेड (चेना ऑरियंटालिस)
गप्पी
मोली
गोल्ड फिश
रेड वाग
रेड लाइन तारपीडो
स्वर्दितैल फिश
ज़ेबरा डानियो
(पनटियस कॉनकोनियस)
किसी भी नये आदमी को किसी भी लाइवबियरर के साथ प्रजनन
पर काम शुरू करना चाहिए और बाद में नवजात की देखभाल की प्रक्रिया को सीखने के लिए
गोल्डरफिश या अन्यि किसी एग लेयर पर काम करना चाहिए। जीव विज्ञान पर अच्छी जानकारी, खिलाने का व्य वहार और मछली की स्थिति जानना प्रजनन के लिए
जरूरी चीजें हैं। ब्रुड स्टॉशक और लार्वल स्टे ज के लिए जिंदा खाना जैसे
ट्यूबीफेक्स् कीट, मोयना, केंचुएं आदि
का विशेष ध्यावन की जरूरत होती है। शुरुआती चरण में लार्वा को इंफ्यूसोरिया,
अर्टेमेनिया नोपली, प्लांेटोंस जैसे रोटिफर्स
और छोटे डैफनिया की जरूरत होती है। भोजन की एक इकाई का उत्पाटदन उस इकाई के
रख-रखाव के लिए बहुत जरूरी है। अधिकतर मामलों में प्रजनन आसान होता है, लेकिन लार्वा का पालन विशेष देखभाल की माँग करता है। पूरक भोजन के तौर पर
किसान स्थानीय कृषि उत्पापद का इस्तेकमाल कर भोजन तैयार कर सकते हैं। स्वाथस्य्कव
से जुड़ी समस्यारओं से बचने के लिए फिल्टार किये गये पानी की आपूर्ति की जानी
चाहिए। सजावटी मछलियों का प्रजनन वर्ष के किसी भी समय में किया जा सकता है।
सीआईएफए की ऑर्नामेंटल फिश कल्चर यूनिट
1.
प्रजनन और पालन इकाई के करीब
पानी और बिजली की लगातार आपूर्ति की जरूरत होती है। यदि इकाई झरने के करीब स्थित
है, तो वह अच्छा होगा जहाँ इकाई ला सकने वाला पानी प्राप्त कर
सके और पालन इकाई में भी इसी तरह का इंतजाम हो सके।
2.
ऑयल केक, चावल पॉलिश और गेहूँ के दाने जैसे कृषि आधारित उत्पादन और
पशु आधारित प्रोटीन जैसे मछली के भोजन की निरंतर उपलब्धता मछली के लिए खुराक की
तैयारी को सुलभ बनाएगी। प्रजनन के लिए चुना गया स्टॉक अच्छी गुणवत्ता का होना
चाहिए ताकि वह बिक्री के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली मछलियों का उत्पादन कर सके।
छोटी मछलियाँ भी अपनी परिपक्वता की स्थिति तक वृद्धि करती हैं। यह मछलियों की
देखभाल का न केवल अनुभव प्रदान करता है, बल्कि नियंत्रण करने
में भी मदद करता है।
3.
प्रजनन और पालन इकाई को हवाई
अड्डे/रेलवे स्टेशन के पास स्थापित करने को तरजीह दी जा सकती है ताकि जिंदा
मछलियों को घरेलू बाजार में और निर्यात के लिए आसानी से लाया व ले जाया जा सके।
4.
प्रबंधन को सुगम बनाने के लिए
एक मछली पालक ऐसी प्रजातियों का पालन कर सकता है जिन्हें एक बाजार में ही उतारा
जा सके।
5.
बाजार की माँग की पूरी जानकारी, ग्राहक की प्राथमिकताएँ और व्यक्तिगत संपर्क के जरिए बाजार
का परिचालन और जनसंपर्क वांछनीय है।
6.
इस क्षेत्र में सम्मानीय और
विशेषज्ञ समूहों से बाजार में आए बदलावों के साथ-साथ शोध और प्रशिक्षण के जरिए
हमेशा संपर्क में रहना चाहिए।
लाइवबियरर के छोटे स्तर पर प्रजनन और पालन की
आर्थिकी
क्रम संख्या
|
सामग्री
|
राशि
(रुपये में)
|
I.
|
व्यय
|
|
क.
|
स्थायी
पूँजी
|
|
1.
|
300 वर्गमीटर क्षेत्र के लिए सस्ता
छप्पर (जाल वाला बाँस का ढाँचा)
|
10,000
|
2.
|
प्रजनन
टैंक (6’ x 3’ x
1’6”, सीमेंट
वाले 4)
|
10,000
|
3.
|
पालन टैंक
(6’ x 4’ x
2’ सीमेंट
वाले 2)
|
5,600
|
4.
|
ब्रूड स्टॉक
टैंक (6’ x 4’ x
2’, सीमेंट
वाले 2)
|
5,600
|
5.
|
लार्वल
टैंक (4’ x 1’6”
x 1’, सीमेंट
वाले 8)
|
9,600
|
6.
|
1 एचपी पम्प वाला बोर-वेल
|
8,000
|
7.
|
अन्य
चीजों के साथ एक ऑक्सीजन सिलेंडर
|
5,000
|
कुल योग
|
53,800
|
|
ख.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
|
1.
|
800 मादा, 200 नर, 2.50 रुपये प्रति पीस गप्पी, मोली, स्वॉर्डटेल और प्लेटी के
हिसाब से
|
2,500
|
2.
|
भोजन (150 किलो/प्रतिवर्ष 20 किलो के हिसाब से)
|
3,000
|
3.
|
विभिन्न
तरह के जाल
|
1,500
|
4.
|
250 रुपये प्रति माह के हिसाब से
बिजली/ईंधन
|
3,000
|
5.
|
छेद वाले
प्लास्टिक ब्रीडिंग बास्केट (एक के लिए 30 रुपये के हिसाब से 20 की संख्या में)
|
600
|
6.
|
महीने में 1000 रुपये के हिसाब से मजदूर
|
12,000
|
7.
|
विविध व्यय
|
2,000
|
कुल योग
|
24,600
|
|
ग.
|
कुल लागत
|
|
1.
|
परिवर्तनीय
लागत
|
24,600
|
2.
|
स्थायी
पूँजी पर ब्याज (प्रतिवर्ष 15 फीसदी के हिसाब से)
|
8,070
|
3.
|
परिवर्तनीय
लागत पर ब्याज (छमाही 15 फीसदी के हिसाब से)
|
1,845
|
4
|
गिरावट (स्थायी
लागत पर 20 फीसदी)
|
10,780
|
कुल योग
|
45,295
|
|
II.
|
कुल आय
|
|
76800 मछलियों की बिक्री एक रुपये
के हिसाब से, जिन्हें एक माह तक 40 की संख्या के हिसाब से तीन
चक्रों तक पाला गया हो, यह मानते हुए कि इनमें 80 फीसदी जिंदा बचेंगी
|
76,800
|
|
III.
|
शुद्ध आय
(कुल आय- कुल लागत)
|
31,505
|
स्त्रोत
हिमाचल
प्रदेश में ट्राउट का उत्पादन
- परिचय
- साइट का
चयन
- तालाबों
का निर्माण
- तालाब
में जल की आपूर्ति
- एक
ट्राउट फार्म के लिए आवश्यक भौतिक-रासायनिक मानक
- सेवन
योग्य आकार की मछली
- स्वच्छता
परिचय
भारत के हिमाचल प्रदेश में ट्राउट की अधिकता को देखते
हुए ज़ोन दो और तीन में अत्यधिक बहुमूल्य मछली "रेनबो ट्राउट" की
पैदावार के लिए विशाल क्षमता का निर्माण हुआ है। इन दो क्षेत्रों के तहत कृषि के
लिए मौसमी परिस्थितियां शीतजलीय कृषि के लिए बेहद अनुकूल हैं। हाल ही में मिले
संकेत इंगित करते हैं कि ट्राउट कम ऊंचाई पर 1000 एमएसएल तक पैदा की जा सकती है, बशर्ते जल की अधिकतम
गुणवत्ता और मात्रा सुनिश्चित की जाए।
साइट का चयन
ट्राउट की पैदावार के लिए इस तरह का स्थान चुनना
चाहिए जहां नदी, झरने जैसे बारहमासी स्रोत के माध्यम
से उचित गुणवत्ता और मात्रा में पानी उपलब्ध हो।
तालाबों का निर्माण
ट्राउट मछली की पैदावार के लिए सीमेंट के पुख्ता
तालाब/ रेस वे की आवश्यकता होती है। आयताकार तालाब गोल कुंड से बेहतर होते हैं। एक
ट्राउट रेस वे का किफायती आकार 12-15 एम x
2-3 एमएस x1.2 -0.5 एम होना चाहिए जिसमें पानी
की आवक और अतिप्रवाह एक तारजाल स्क्रू से कसा होना चाहिए ताकि पैदा की गई प्रजाति
के निकास को रोका जा सके। पैदावार की उचित सुविधा तथा समय-समय पर टैंक की सफाई की
सुविधा के लिए तालाब के पेंदे में एक ड्रेन पाइप होनी चाहिए|
ट्राउट के तालाब में पानी की आपूर्ति एक फिल्टर/
अवसादन टैंक के ज़रिए होनी चाहिए। इस क्षेत्र में विशेष रूप से मानसून के मौसम में
गाद की बहुत समस्या होती है जब पानी मटमैला होता है, जो
ट्राउट की पैदावार के लिए अच्छा नहीं है। एक ट्राउट फार्म के लिए पानी की मात्रा
भंडारण के घनत्व, मछली के आकार के साथ ही पानी के तापमान से
संबंधित है। इसलिए, यह आवश्यक है कि पानी का प्रवाह बहुत
ध्यान से नियामित किया जाए। उदाहरण के लिए, 30,000 फ्राइज़
के लिए 15 लीटर/ मिनट पानी चाहिए, 250 ग्राम
से कम की मछली के लिए 10-12 डिग्री सेंटीग्रेड पर 0,5 लीटर/किग्रा/मिनट प्रवाह की आवश्यकता है। उपर्युक्त किफायती
आकार के पानी के टैंक में पानी का 15 डिग्री सेंटीग्रेड पर 5-50 ग्राम फिंगरलिंग्स के भंडारण के लिए 52 घन मीटर
प्रति घंटा होना चाहिए। इस प्रकार, पानी का प्रवाह ऐसे
नियंत्रित किया जाता है कि मछलियां एक जगह पर इकट्ठा नहीं हों और तेजी से चलें भी
नहीं। पानी के तापमान में वृद्धि के साथ पानी का प्रवाह भी बढ़ाया जाना चाहिए।
ट्राउट की सफल पैदावार के लिए जिम्मेदार
भौतिक-रासायनिक मानक हैं तापमान, घुलनशील ऑक्सीजन,
पीएच और पारदर्शिता।
तापमान : मछली 5 से
18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सीमा के भीतर अच्छी तरह से
पनपती है, लेकिन ऐसा पाया गया है कि यह 25 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बर्दाश्त कर सकती है और इसमें मछलियों की मौत
नहीं होती। हालांकि, मछलियों की अधिकतम वृद्धि 10 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सीमा के भीतर पाई
जाती है।
घुलनशील ऑक्सीजन : ऑक्सीजन सांद्रता की सीमा 5.8-9.5 मिलीग्राम/लीटर है। यदि ऑक्सीजन सांद्रता 5 मिलीग्राम/लीटर हो तो पानी का प्रवाह बढ़ाना उचित होगा।
पीएच : ट्राउट के लिए न्यूट्रल या थोड़ा क्षारीय पीएच सबसे
अच्छा है। सहन करने योग्य पीएच के न्यूनतम और अधिकतम मान क्रमशः 4.5 और 9.2 हैं, हालांकि,
यही पीएच रेंज इस मछली के विकास के लिए आदर्श है।
पारदर्शिता : एकदम पारदर्शी पानी की जरूरत होती है और उसमें ज़रा भी
गन्दगी नहीं होनी चाहिए। गंदगी का जमाव 25 सेमी से अधिक नहीं होना चाहिए।
भंडारण का घनत्व : यह जल आपूर्ति, पानी
के तापमान, गुणवत्ता/पानी और चारे के प्रकार के साथ संबंधित
है। यदि पानी का तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर है,
तो भंडारण का घनत्व सुझाए गए घनत्व से कम रखा जाना चाहिए। फ्राई
फिंगरलिंग्स (5 से 50 ग्राम) का भंडार
पानी की प्रति घन मीटर सतह पर 20 किलो मछली की दर से किया
जाता है।
चारे की आपूर्ति : चारे की मात्रा मुख्य रूप से पानी के तापमान और मछली
के आकार पर निर्भर करती है। यदि पानी का तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर है, तो सुझाए गए चारे को
आवश्यकता का ठीक आधा कर देना चाहिए और 20 डिग्री सेंटीग्रेड
से ऊपर चारा देना बंद करना ही बेहतर होगा। आसमान में बादल छाने पर या मटमैला पानी
होने पर भी चारा नहीं देना चाहिए।
चारा उपलब्ध कराने का एक व्यावहारिक फॉर्मूला नीचे
दिया गया है:
घटक
|
घटक की दर
|
10 किलो चारा तैयार करने के लिए मात्रा ( किलो)
|
मछली का
भोजन
|
50
|
5
|
सोयाफ्लेक
|
10
|
1
|
मूंगफली का
केक
|
20
|
2
|
गेहूं का
आटा
|
10
|
1
|
अलसी का
तेल
|
9
|
0.9
|
सप्लेविट -
एम्
|
1
|
0.1
|
कॉलिन
क्लोराइड
|
0.1
|
0.01
|
फिंगरलिंग्स की बेहतर वृद्धि के लिए 4-6% की दर से चारा दिया जाना आवश्यक है, लेकिन
चारे के नियम का पालन करने के लिए पानी के तापमान पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। 10-12 डिग्री सेंटीग्रेड पानी के तापमान की रेंज में 6%
चारा देना आदर्श है, लेकिन जब यह 15
डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है, तो चारे को 4% तक कम करना चाहिए और 19 डिग्री से अधिक पर आदर्श
मात्रा सिर्फ 50% होनी चाहिए। प्रति माह आदर्श वृद्धि दर 80 ग्राम है।
250 ग्राम वजन पाने के बाद मछली निकाल लेने की सलाह दी जाती है
क्योंकि इस आकार के बाद विकास की गति धीमी हो जाती है और उसे पाल कर बढ़ाना
फायदेमंद नहीं होता है।
ट्राउट की पैदावार में सफाई एक बहुत ही महत्वपूर्ण
कारक है। समय-समय पर ट्राउट को या तो 10% फॉर्मेलिन या 4 पीपीएम पोटैशियम नाइट्रेट के घोल से
साफ़ और कीटाणुरहित करना चाहिए। संक्रमित मछली को तुरंत टैंक से हटा दिया जाना
चाहिए और यदि कोई रोग हो तो किसी मछली विशेषज्ञ से परामर्श लिया जाना चाहिए।
स्त्रोत
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